बन्धन
हम सब बंधे हुए हैं रंग बिरंगी डोरियाँ, नारियल की रस्सियाँ, और बेड़ियां-- जकड़े हुए हैं हमे, अन्दर से बाहर तक। सिमटाव देतीं है ये बंदिशें प्यार को गिरफ्तार कर लेते हैं रिश्ते; हक सिमट जाते हैं औरतों के, चूडियों के बीच। हम सब बंधे हुए हैं-- हमारा ज़मीर बंध गया है चंद नामों में, हमारे अधिकार बँट गए हैं-- शहर, गाँव, मुहल्लों की चंद गलियों में, हमारी मेहनती मुहब्बत चिपकती जा रही है-- दस फ़ीट के फ्लैट; और चंद बीघा खेतों में, हम भूल रहे हैं, कारगिल और बटालिक से आगे के अपने विस्तार को। हम सब बंधे हुए हैं। ये बन्धन नहीं हैं, ये हैं जंगलों से आये हुए प्रागैतिहासिक काल के, ये हैं हैवानियत के कुछ इनाम-- इंसान के नाम, इनकी अमीरी बनी रहेगी-- लूटपाट, हत्या, चोरी, बलात्कार और घुसपैठ के सिक्को से,