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छुप जाउंगी महकती नज़्म बन कर

आधी बातें जो मेरे दिल में चलाती हैं आंधियां समझने की तुम्हें दरकार नहीं आधी बातें तुम्हे छू के गुजर जाती हैं... मेरे जज्बातों को इश्क के पैरहन की जरुरत थी मगरूर दुनिआबी बातों की क्या उन्हें फिकर. तू भूख, सर्दी ओ गर्म थपेड़ों से उलझ मैं ढूंढ लेती हूँ किसी और नज़्म का आशियाना ये सही है कि तुम्हारे इल्जाम हकीकत हैं, तुम्हारे ठोस उसूलों की तरह मैं ताउम्र गुजार दूंगी ख्वाबों से हसीं इन इल्जामों में तेरा मेरा साथ एक फ़साना ही रहेगा मगर तू जहाँ भी मौजूद है जमीन बन कर मैं छुप जाउंगी वहीं एक महकती नज़्म बन कर.