' ट ' वर्गीय ण वाली जिंदगी
घर में किसी को बहुत हैरानी नहीं होती जब हम कोई ऐसा शब्द प्रयोग करते हैं जो है ही नहीं। पर हां हंसते बहुत है। बल्कि हमारा दावा है कि वर्तमान हिंदी में ज्यादातर क्रांतिकारी शब्द मैने और मेरे आसपास के स्वनाम धन्य बिहारी भाई बहनों ने ही बनाए हैं। अब आप ' मुन्नी बदनाम हुई, मैं झंडू बाम हुई' गाने को ही लीजिए । मैने झंडू बाम इसलिए बोला अपनी जिंदगी को क्युकी मुझे पसंद नही था कि मेरी लाइफ मेरे कॉलेज के रिजल्ट से परिभाषित हो। इससे भी ज्यादा मुझे इस बात से रंजिश थी कि जिंदगी झंड है बोलने में भाषा थोड़ी पुरुषोचित लग रही थी। अब इसको संयोग कहे कि साजिश तीन साल के अंदर मेरा कॉपी राइट लेने लायक शब्द आविष्कार देश की हर गली के जुबान पर! अब दोस्त लोग बोलते हैं हम फालतू में फुटेज ले रहे। लेकिन हम कह रहे आपको एक बिहारी सौ पर भारी! आप देख लीजिएगा थोड़े दिन बाद लोग मेरे मुंह से निकला ये ट वर्गीय ण वाला एक्सप्रेशन भी चुरा लेंगे और तब कहेंगे ई त पहले से था हो। तो इसलिए पहले ही अपनी चेतना को जागृत करते हुए हम आज लिख रहे की मेरी जिंदगी ट वर्गीय ण बन गई है - मतलब मुश्किल और एकदम बेकार फिर भी एकदम झक्कास...