इस बार फरवरी और बेरंग है तब इस शहर में लॉकडाउन था अब दिलों पे ताले लगे हैं
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Showing posts from February, 2022
ऑनलाइन फ्रेंड्स
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इस ऑनलाइन दुनिया में भी फ्रेंडशिप की एक कहानी बनी है चौरासी पंक्तियों के साथ एक दम परफेक्ट एक शुरुआत मीठी सी वादों चांद सितारों और खुशबुओं के साथ जाने कितने सामाजिक और राजनीतिक असंग जुड़ गए हैं और सोशल मीडिया के चकमक प्लेटफार्म पर लाइक्स एंड फॉलोइंग से परिभाषित होते हुए रिश्ते व्हाट्स ऐप पर कितनी संजीदा हो जाते हैं और फिर वर्चुअल दुनिया का सच बाहर आते ही इतना बोसीदा, उबाऊ लगने लगता है कि फिर से ढूंढने निकल पड़ते हैं लोग रोड पर सुडकने चाय और जिंदगी का मर्म...
स्त्री बनना पड़ता है
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जिंदगी में बहुत सारी चीजें पहले से पैर नहीं होते। समाज में स्त्री की एक परिभाषा तय कर दी गई है। जब भी स्त्री उस चौखट से निकलना चाहती है वह हाशिए पर खड़ी होती है। सवाल यह नहीं है कि वह उस परिभाषा से निकलना चाहती हैं बल्कि सवाल यह है स्त्रियों के लिए यह मापदंड किसने और कब बनाए। अगर शुरू से शुरू करें तो समाज में हर चीज पुरुष प्रधान रही है। चाहे वह शारीरिक दुर्बलता हो, चाहे संपत्ति पर अधिकार की बात या समाज में अपने स्थान को कायम रखने की बात, स्त्री अपने जीवन की परिभाषा ओं के लिए पुरुष पर निर्भर है और यह निर्भरता पुरुषों ने ही तय किया है। आज की स्त्री की स्थिति कई बातों से मिलकर तय हुई है: 1 समाज की ऐतिहासिक संरचना 2 शारीरिक दुर्बलता 3 स्त्री और सामाजिक जिम्मेदारियां 4 परिवार और स्त्री 5 वैवाहिक संरचना और स्त्री 6 बदलते परिवेश में बढ़ते हुए दोहरे दायित्व 7 बदलती पृष्ठभूमि में स्त्री