ये वाकई मे एक संपूर्ण रिश्ता था यह सब कुछ निर्द्वंद् था अगाध प्रेम के साथ बिना किसी बंधन के भी हैं जुड़े थे बिना किसी वादे के साथ का अहसास था और मुझे यकीं था कि कुछ और तलाश करने की जरूरत नही थी पर तुम्हारी तलाश अभी बाकी थी शायद मै उस तलाश को भी अपने इश्क़ का हिस्सा मान बैठी थी हमेशा लगा कि तुम वाकई हर चीज हमसे बेहतर कर सकते हो और इस कदर आँख मूँद लिया मैंने कि हर चीज तुम्हारी नज़रों से ही देखूँ मगर ये भूल गयी कि मेरे हिस्से का आसमां मेरी इस बेइंतहा मुहब्बत मे गुम हो गया कहीं वो आत्म विश्वास, वो दुनिया को खुद अपनी आँखों से देखने की चाहत वो उत्तरी ध्रुवी रोशनियों तक पहुँचने की जिद और अपनी सोच और तालीम को किसी भी मन्दिर, मस्जिद चर्च और गुरुद्वारे मे छुप कर बैठे भगवान् से आगे रखने का सुकून... सब धीरे धीरे पीछे हो गए थे। शायद इश्क़ की आखिरी इंतहा यही थी शायद हर रिश्ते की एक मियाद होती है ये स्वीकारने का वक़्त आ गया था-- तुम्हारी बेचैन जिंदगी को अब पनाह की जरूरत नही थी। तुम्हे और भी आसमां तलाशने थे अपने ग...