Loneliness in a crowded city
Nov 16, 2024
गुजर गया जो वक्त
Sep 29, 2024
अच्छा लगता है !
Sep 28, 2024
उसी के नाम से अब भी
kavita se khubsurat hai shayri
Aug 3, 2024
तुम्हारे वादे
तुम्हारे वादे
ओह कितनी हसीं होती है तुम्हारी हर एक बात
जैसे चांदनी रात की शबनम
जैसे तारो ने बरसा दिया हो अपना प्यार
जैसे बादलों ने बख्श दी हो हर नेमत
मगर तुम्हारा न आना हर बात को बेमानी बना देता है
हो जाती है सुबह से शाम और फिर दिन से रात
बादलों कि नेमतें जब्त कर लेती है
कोशिशें तुम्हे भूलने की
Jul 19, 2024
बची हुई कुछ चीजें
Jan 24, 2024
Jan 23, 2024
पूर्ण विराम
Dec 9, 2023
रेशम की डोर
कभी कभी हमें लगता था, ज्यो तुम्हे पहले भी कहीं देखा हो
पहले भी कहीं हम मिले हों,
----- ज्यों सरयू के किनारे,
चित्तोर के दुर्ग में,
हुमायूँ के मकबरे में
रेशम की चमकती डोर में , एक झलक मिलती थी स्नेहिल
अब जाना वो तुम थे...
स्कूल की दीवारों से जुड़े खून के रिश्तों से परे
भाई शब्द का अर्थ बताने वाले.. तुम थे
प्यार के मासूम बंधन से कौन बंधा रह पाता है
बंद लिफाफों में भरे सूरज और पहाड़ों के
अधूरे चित्रों में कौन रंग भर पाता है
शिवाजी स्टेडियम से लोटस टेम्पल तक
तुम आओ हम सब कर लेंगे का वादा करने वाले भी तुम थे ....
अमावास का टिमटिमाता तारा
तुम चाहो तो चाँद को छु लो
मैं झील किनारे ही बैठना चाहती हूँ
लहरों के बीच बनती बिगडती
चाँद की परछाई देखते रहना चाहती हूँ
मैं डरती हूँ चाँद को छूने से कहीं दाग न लग जाये
बस आईने की ख़ूबसूरती निहारना चाहती हूँ
तुम महफ़िल की रौनक बनना चाहते हो
मैं अमावास का टिमटिमाता तारा
आसमान की ऊंचाई और झील की गहराई
कुछ ऐसा ही फर्क है तेरी मेरी चाहत में
जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग
हाँ ये सही है मैं उस तरह सोच नहीं पाती
जैसा अक्सर सोचते हैं लोग.
मैं तुम्हारी हर एक बात आशाओं की डोर से गूंथ लेती हूँ
और हर डोर सपनो की माला बन जाती है.
मैं हर रंग को ख़ुशी की नेमत समझ लेती हूँ
और हर ख़ुशी मेरे लिए इन्द्रधनुष बन जाती है.
मैं हर उस कागज़ को कुरान समझ लेती हूँ जिस पर प्यार लिखा होता है
और इश्क मेरे लिए खुदा की इबादत बन जाती है.
पर तुम जानते हो, चीजें अक्सर वैसी होती नहीं,
जैसा मैं सोचती हूँ, जैसा मैं देखती हूँ.
तुम्हारे बार बार समझाने पर भी
मैं सख्त जमीन को महसूसना नहीं चाहती,
मैं क्या करूँ, अपने आप को बदल नहीं पाती.
उस तरह, वैसा बना नहीं पाती,
जैसी चीजें होती हैं ...
जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग ...
चांदनी का अमावस
पता नहीं क्यों डर लगता है
चाँद को देखकर
और हसीं चांदनी
शूल बनकर दिल के आर पार होती जाती है
तुम्हारी खामोश ख़ूबसूरती
रातों को खौफनाक नज़र आती है
मेरी आखों की कशिश
अनजानी तड़प में बदल जाती है
पता नहीं क्यों
डरती हूँ अमावस की कलि ररत न आ जाये
और ये समंदर किसी नदी में न खो जाये
शायद मैं खुद चांदनी का अमावस हूँ
उदास है शाम
आ जाओ कि बहुत उदास है शाम
तुम्हारा आना बिखेर देता है कई रंग.
आ जाओ कि बड़ा खामोश है समा
तुम जो आते हो कि गूंजने लगती है गुंजन.
आ जाओ बड़े स्याह लग रहे लम्हे जिन्दगी के
कि तुम्हारे आने पे उजास से भर जाता है मन.
आ जाओ कि ताप रही जेठ की दुपहरी की हवा
कि प्यार की खुशबुओं से भर जाये चिलमन.
११.०४.२००३
Jul 2, 2023
अनिवार्य दुख
एक वही अक्स आता रहा
सार्वजनिक प्रेम
Jun 21, 2023
आखिरी जिद
Jun 16, 2023
चुपके चुपके मत जाओ
इश्क में ये भी सीख लिया
May 14, 2023
उसे प्यार नही था कभी
Apr 27, 2023
बीच के खाली पन्ने
सौगात
ओस की बूंद
It's for you naughty
Apr 25, 2023
स्याह जिन्दगी
कुछ दिन थे बाकी जिन्दगी के
आधे अधूरे सपनों की छांह समेटे
कुछ धुल थी उम्मीदों की
वक्त की मेज पर हौले हौले जमी सी
टूटे बिखरे कांच से
बिखरते सपनो के टुकड़ों से
अब स्याह हो गई है जिन्दगी
स्याह हो गई है हर कहानी
राख हो गए हैं अधूरे सपनेऔर कांच के टुकड़े
साँसों की किरकिरी बन गए हैं
जब तुम नहीं होते हो
काली काली परछाइयों के बीच
मई बिलकुल अकेली हो जाती हूँ
भय के भयानक पंजे मुझे दबोचने लगते हैं
सच और झूठ का फरेब आग उगलता है
इन सबके बीच डरती कांपती मैं
......सब कुछ एक दुह्स्वप्न की तरह.
तुम......,
तुम कहाँ होते हो प्रिय
तुम्हारी याद एक सिहरन बनकर उभरती है
और तुम्हारा न होना...विषदंश !!!
मेरे अकेलेपन में हर तीस कि वजह तुम होते हो
क्युकि तुम वहां नहीं होते हो !
दीवार पर फैलते बिगड़ते पंजे
यादो की सिहरन और वो भयानक आग
मुझे दबोचने लगते हैं कि अचानक
खुल जाती है आँखे
टूट जाता है कुछ देर के लिए ही सही
तुम्हारे पास होकर भी तुम्हे खो देने का भय
पलट कर देखती हू तुम्हे छूकर
हर त्रास को झूठ समझ कर फिर सो जाने की कोशिश करते हुए
बस चलते जाना है
बहुत मुश्किल है खुद से प्यार करना
जब दिल यूँ बेखुदी में डूबा हो
अश्कों से पूछती हूँ ख़ुशी कि महफ़िल कहाँ है
मै उस कश्ती का नाखुदा हूँ
जिसका कोई साहिल नहीं
उम्र बस इक प्यास है लाख पीने से नहीं बुझती
कदमो को बस चलते जाना है
चाहे कोई मंजिल नहीं
यूँ ही पूछ लेती हूँ हर मुसाफिर से
जरा सा साथ चल लें
अब कोई हमसफ़र गाफिल नहीं
कारवां
ये सच है कि मैं वो कारवां बन गई हूँ
जिसका कोई मुकाम नहीं
पर हर एक दास्ताँ कई जिंदगियों का जीना है
बस अफ़सोस हर पन्ने को पलटते हुए
मेरी दास्ताँ में हमदम तुम्हारा कहीं नाम नहीं
अपने अश्क, हसरते और हकीकत भी
मैंने जी ली तुम्हारे वास्ते
और तुम्हारा ये कहना
कि इन सब बातों का कोई अंजाम नहीं ......