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बेचारे लड़के क्या करें

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लडके अब नहीं चाहते मा बाप के साथ रहते हुए पढ़ाई करना बाल बनकर शेविंग करके कॉलेज जाना एक शहर में रहकर नौकरी करना मां की कल्पना के अनुसार एक आदर्श बहू ढूंढना वो चाहते हैं साथ पढ़ी लिखी मॉडर्न प्रोग्रेसिव स्त्री जो उनके साथ कदम से कदम मिला कर चल सके ऑफिस, क्लब ओर सड़क पर मगर घर जाने पर घूंघट में मां के पांव छू सके दादी काकी नानी के आशीर्वाद लेने ओर दिल जीतने में माहिर हो जरूरत आने पर दस लोगों का भोजन बनाने में उसके चेहरे पे शिकन न आए मगर बच्चों को पैदा करने सम्हालने ओर स्कूल भेजने में जिम्मेदारी शेयर करने न कहे दोहरी जिम्मेदारियां उठाने का अहसान न जताए क्योंकि नौकरी करना उसका शौक है और बाकी सामाजिक जिम्मेदारियां अनिवार्य लड़की अपने पति की दी हुई स्वतंत्रता का आभारी रहे कि उसने मातृत्व ओर गृह मंत्रालय के साथ अर्थव्यवस्था में भी उसे शामिल होने की स्वतंत्रता दी है बस लड़के समझ नहीं पाते ये पढ़ी लिखी लड़कियां इतना कुछ पाकर भी खुश क्यों नहीं हैं पितृसत्ता के साए में पले बढ़े दुलारे लड़के ये समझ नहीं पाते कि लड़कियां अपना आसमान अलग क्यों ढूंढ रहीं ...

अपने देश के प्रवासी

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हम जड़ से उखड़े हुए अपने ही देश में प्रवासी लोग सरकारी नौकरी ओर आवास पाकर  खुशी जाहिर करना चाहते हैं  मगर सामने जो लोग हैं वे हमे नहीं पहचानते उनके लिए सिर्फ फैलाने ब्लॉक के पहले तल्ले में बसे सरकारी ऑफिसर जो हर 3- 4 साल में  तबादले में चले जाते हैं हम वहां के मालिक नहीं, किरायेदार भी नहीं अरे नहीं आप अपने आवास में   रह सकते हैं मगर कोई परिवर्तन नहीं कर सकते  आगे की दीवार बढ़ा नहीं सकते  ओर पीछे की बालकनी में गमले नहीं लगा सकते  हमारे लिए अब अपना कहने के लिए कोई जगह नहीं छुट्टियों में गईं पहुंचने पर अक्सर  जाने पहचाने लोग अब भूलने से लगे हैं या बचपन में साथ खेले चचेरे भाई ओर बहन भी  हमारी तरह कहीं दूर जा बसे हैं काका काकी ओर पड़ोस वाली भाभियां अब बूढ़े हो चले हैं उनके बढ़ते चश्मे ओर मंद पड़ती यादाश्त में ऐसा कोई चेहरा नहीं बचा जो दस साल बाद हम उन्हें याद आ जाएं शहर के मकान पर अपना नाम  लिखवा लेने के बाद भी हम वहीं हैं अच्छा वो बिहारी फैमिली हमारे आधार कार्ड ओर वोटर आईडी भी बदल चुके हैं अब पीछे जाने का कोई रास्ता हमने छोड...

थोड़ा वक्त लगेगा

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कुछ दिन ओर चुभोगे तुम खामोशी के बीच बार बार  आंसुओं का एक रेला सा आंखों में न आकर गले में अटकता सा नीचे से ऊपर तक  सिर्फ बंगाल की खाड़ी की तरह खारा फिर सब ड्राई... वक्त ब्लॉटिंग पेपर है सुना है सब सोख लेता है वादे, कसमें, वफ़ा, बेवफा... शिकवे ओर शिकायतें भी हावड़ा ब्रिज से गुजरते वक्त  अटकोगे अचानक तुम भी इस मजाक पर खुद ही हंसोगे हम सब हर बार खुद को थोड़ा थोड़ा खो देते हैं ये कहने के बावजूद  कि इश्क़ का ये मंजर पसंद नहीं आया बाजार है, लेट्स मूव ऑन, आगे चलो समेट कर खुद को तुम्हे ओर वक्त को  चलना तो मुझे भी है,  थोड़ा अजीब हूं थोड़ा ओर वक्त लगेगा...

इक्कीसवीं सदी के दुर्लभ वादे

मुझे वो कुछ अलग सा लगा मगर ये झूठ था उसकी बातों में कुछ नया सा था मगर ये भी झूठ था  तमाम बातों के बीच उसकी आंखों का नाम होना झूठा था वो गहराइयां वो वादों की फेहरिस्त ओर आखिरी मुकाम होने की ख्वाहिशें ये मंजर नया था मगर झूठा ही था  फिर भी सच था वो वक्त.... जिसको जिया गया सैकड़ों मील की दूरियों में स्क्रीन पर उड़ती परछाइयों ओर तैरते शब्दों के बीच सब नया था उस वक्त मगर ओर ये भी एक नायाब बात है इनकी अहमियत सिर्फ मिलेनियल बता पाएंगे  वे 90 का प्यार ढूंढते 21वीं सदी की क्रूरता में भटकते लोग तुम क्या जानो 21वीं सदी में ये वादे भी बहुत दुर्लभ होते हैं क्योंकि जेन ज़ी से प्यार वफ़ा वादे जैसे खुशनुमा छलावे भी ऐ आई ने छीन लिए हैं  उनके पास हैं चैट जीपीटी के रेडीमेड उत्तर  जिनमें जज़्बात नहीं मशीनी बात होती हैं सिर्फ 

वर्ष 2025 में नारी समानता

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वर्ष 2025 में नारी समानता बहुत लोग मानने लगे हैं  हिंदुस्तान में  नारी समानता आ गई हैं हालांकि ये अलग बात है  अब भी रोज रोज   पिट जाती हैं बेटियां, बहुएं ओर माएं  पुरुषों के सामने जुबान खोलते पढ़ने, बाहर जाने ओर कमाने का अधिकार मांगते हुए  अब भी   अखबार के हर दूसरे पन्ने पर  रसोई गैस का सिलेंडर फट रहा  अब भी फुटबॉल खेलते हुए बेटियां  मिट्टी में गाड़ दी जाती हैं कि  समाज   उनके पिता को बेटी की कमाई पर पलने वाला न कह दे  अब भी तलाकशुदा बेटियों से  ज्यादा अच्छी अपने ससुराल से अर्थी पर निकलने वाली  बेटियां ही मानी जाती हैं अब भी सुप्रीम कोर्ट के दिए  संपत्ति के अधिकार पर  अटक जाती हैं बेटियां  मायके से रिश्ता खत्म होने के डर से मगर सोशल मीडिया में जरूर आ गई हैं  बहुत सारी क्रांतियां दूर तक दिखता है सबको   ...........नीला ड्रम हां वो।नीला।ड्रम   ओर वो एक आध किस्से   जहां औरतों ने भी अपराध किए हैं मर्दों के खिलाफ ओर यहीं पर ओर छुप जाती हैं सा...

QUESTION HOUR

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  I looked at him He looked at me And time stopped I forgot it was a time  to answer the questions asked He continued peeping in papers and documents A glance slipping through hands,  notes, pens and nail polish. A pause at neck, ears, lips and saree And time stopped I suddenly remmebered I had to look in eyes Face him direct and still  had to reply what he asked  even when it didn't matter Yes it didn't matter at all In that very moment we both knew  What mattered now  was not written, not asked  Just felt from the side of smirks  and the hidden smiles That remained there for hours, days and months

जब से तुम गए हो

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 जब से तुम गए हो .... हां मैने अब इस बात को स्वीकार कर लिया है  कि दो समानांतर रेखाएं मिल नहीं सकतीं मैने मान लिया है  कि कुछ रिश्तों की रिप्लेसमेंट नहीं होती और  जिंदगी का आखिरी मुकाम  एक अनंत तलाश नहीं हो सकती  जैसा तुम मानते हो/ थे  बड़े आराम से हर बार अपने बे असूल जिंदगी में  जौन इलिया को दोहरा देते थे  कि तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम अब तो मैने ये भी मान लिया है  कि 21वीं सदी में मुकम्मल जिंदगी ओर इश्क के सपने  दोनों ही सिरे से गायब हो चुके हैं अब लोग कार्प दियाम ओर क्षण में जीने का दम भरते हैं बहुत ही अभिमान के साथ ओर जाते जाते तुम ये भी अहसास करवा गए हो  कि मेरी खुशफहमियों की सारी चाबियां मेरे ही पास हैं  अब अपनी रफ्तार में किसी पिलियन के  शरीक होने की दरकार नहीं