खुद से खुद को रोकना, आंखों से बह जाने देना सारी शिकायतें सपने ओर उम्मीदें पोंछ लेना एक बार फिर से अपने सुर्ख हुए गाल आस्तीन से रगड़कर चेहरे को।सामान्य दिखाने की कोशिश ओर मुंह घुमा कर कहना सब ठीक है बिना किसी शिकायत के अब हमारे दरम्यान कुछ भी नहीं बचेगा बिना झिड़कियों के तुम्हारा खयाल रखना भी कोई मायने नहीं रखता सहज और सामान्य प्रीत किसे अच्छी लगती है तुम्हे हमेशा सबकुछ तूफानी चाहिए था बिना परिभाषा के मुझे परिभाषाओं में बंधी सुनामी अगर मैं नदी बन गई होती तो फिर भी तुमसे होकर गुजर जाती पर तुम्हे पहाड़ या समंदर भी कहां बनना था छद्म हम दोनों के बीच खामोशी की दीवार ला रहा था एक झटके में देखो अब सबकुछ कितना साफ स्वच्छ खाली सा दिख रहा उफ्फ कितनी जटिलताएं थीं इस प्रेम में इसे अब जाने देना ही था....@gunjanpriya.blogspot.com