Jan 10, 2025

वरिष्ठ नागरिकों का दुर्व्यवहार

हमारे समाज में बढ़ती उम्र के साथ जुड़ा हुआ है - वरिष्ठ नागरिकों का दुर्व्यवहार और उनकी उम्र का बहाना बनाकर सुविधाओं का दावा करना

समस्या की पहचान

हम अक्सर देखते हैं कि कुछ वरिष्ठ नागरिक अपनी उम्र का बहाना बनाकर दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। वे लाइन में खड़े होने से मना कर देते हैं, सार्वजनिक स्थानों पर शोर करते हैं, और यहां तक कि दूसरों के साथ बदसलूकी भी करते हैं।
यह समस्या न केवल दूसरों के लिए परेशानी का कारण बनती है, बल्कि यह हमारे समाज के लिए भी एक बड़ा मुद्दा है।

कारणों की चर्चा

इस समस्या के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कुछ वरिष्ठ नागरिकों को लगता है कि उनकी उम्र के कारण उन्हें विशेष अधिकार प्राप्त हैं। दूसरों को लगता है कि वे अपनी उम्र के कारण दूसरों से अधिक समझदार हैं।

हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि हम समझें कि उम्र के साथ विशेषाधिकार नहीं आते हैं। हमें अपनी उम्र के अनुसार व्यवहार करना चाहिए और दूसरों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए।

समाधान

इस समस्या का समाधान यह है कि हमें अपनी उम्र के अनुसार व्यवहार करना चाहिए और दूसरों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि उम्र के साथ विशेषाधिकार नहीं आते हैं।

हमें अपने वरिष्ठ नागरिकों को यह शिक्षा देनी चाहिए कि वे अपनी उम्र के अनुसार व्यवहार करें और दूसरों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करें।

Jan 8, 2025

पुस्तक समीक्षा प्रेमचंद ओर उनका साहित्य

https://youtu.be/A2U3wp1ZSGs?si=oGg8qO8AvJY7TkZw

Jan 5, 2025

सर्दियों की शिकायतें

उसकी शिकायतें सिर्फ सर्दियों में होती थीं
कहां हो किधर हो
सर्दियों में झगड़ा क्यों करती हो
सर्दियों में कोई रूठता है भला
फिर गर्मियां उसे बर्दाश्त नहीं थी
न धूप का खिलना न सुबह का जागना
उसे रात भर भटकना था
देर शाम तक चाय की टपरी पर 
बैठ कर तमाम उन बातों को कहना 
जो किसी को सुकून दें न दें 
चाय की कड़वाहट जरूर बर्दाश्त हो जाती थी
फिर सर्दियां आ जाती थी वो कड़वे करेले से 
मूंगफली और गुड़ की डली बन जाता था
बड़े इसरार से चाय पीने का आमंत्रण दिया जाता 
ओर हर एक दिन दसियों बार चाय पर बहस छिड़ती थी
सुना है अब भी चाय पीता है कहीं किसी दुकान पर 
अब सर्दियों में वो आग जला कर बैठता है 
कहता है लकड़ियां बहुत अच्छी गर्मी देती हैं
मुझे मालूम है लकड़ियों ओर घर का जिक्र वो सिर्फ सर्दियों में करता है।

Dec 4, 2024

गुजर गया जो वक्त




एक दिन मन में आया 
किसी बिछड़े हुए को याद किया जाए 
फिर बैठ के फुर्सत से कहीं चाय पी जाए 
पास से परखा जाए वक्त की राख के नीचे दबे उन नर्म एहसासों को 
गुजर गया जो सुकून उसे फिर से जिया जाए 
 दिमाग़ ने कहा मत करो बेवकूफी फिर से
दिमाग़ ने कहा मत करो बेवकूफी फिर से 
गुजरे हुए को लौटना फिर से घावों को कुरेदना है
सिलसिले टूटने की वजह अभी खत्म कहां हुई है
क्यों फिर आंसुओं के सैलाब लिए जाएं

मग़र दिल तो दिल है दिल कहा सुनता है दिमाग़ की बातें
लगाया फोन बुला भेजा हमने पुराने वक्त को फिर से
पुराना वक्त आया उसी अकड़ में ऐंठे हुए 
गोया फिर से उसकी जरूरत है किसी को
शायद अब भी उसकी दर्द देने की फितरत नहीं समझ पाया है कोई
शायद अब भी नचा सकता है वो आज को कल की तरह 

बहुत हैरान हुआ मगर अतीत अपने बढ़े कदम के साथ
कहीं दिखी नहीं वो खरोचें  सामने था एक वीतराग।
 शून्य में हताश हो दौड़ा अतीत फिर से
कहीं तो होंगे निशान उसके द्वारा क्षत विक्षत किए एहसासों के
चिल्लाया जोर जोर से वो बेवफ़ाई का फरेब लिए 
वर्तमान रौंद कर उसकी फितरत अकेला आगे बढ़ गया है।

Sep 29, 2024

अच्छा लगता है !

सुनो, 
तुम जो ये सुबह सुबह ३ बजे गुड मॉर्निंग की
 औपचारिकता करते हो, 
अच्छा लगता है! 

अपने व्यस्त जीवन मे इंस्टाग्राम की खिड़की और व्हाट्स के रोशनदान से प्यार वाले इमोजी भेजते हो, 
बचकाना सही 
मगर अच्छा लगता है! 

कभी वीडियो काल की जिद करना और कभी फोन पर इजहारे मुहब्बत सुनने की प्रतीक्षा करना 
सदियों पुराना सा है 
मगर अच्छा लगता है ! 

 और कभी ये कहना कि मै सब ठीक कर सकता हूँ 
और कभी दूर होकर भी पास होने की ' फील ' देना
 नब्बे के दशक वाला  किसी " इलू इलू" के गीत सा है 
मगर अच्छा लगता है ! 

Sep 28, 2024

उसी के नाम से अब भी




फिर वही मोड़ आ के मिलता है वो
जहाँ सिर्फ दूरियों को रहना था। 
ना खैरियत पूछी न हाले दिल अपना कहा 
ना जाने क्यों फिर बेमुरव्वत ही मिलना था। 
उसी के नाम से अब भी निकलते हैं आँसू 
कि जिसके नाम से मुहब्बत का हर ख़्वाब ढलना था। 
फ़ितरत उनकी बेरुखी की हमारी आरजुओ पर भारी हैं हमेशा
हमही से मुखातिब हो उन्हें हमे ही रुस्वा करना था। 


kavita se khubsurat hai shayri



जाने क्यों कविता से ज्यादा खूबसूरत है शायरी 
कविता दर्द का बहाव है तड़प है शायरी
कविता प्रेम है  अगर अधूरा सा तो इश्क़ की इंतहा है शायरी
कविता अगर मन का गीत है भावनाओं मे पिघलती है
शायरी सपनो की उलझन मे बरसती है
कविता जरूरत सी है मगर शौक है शायरी
जाने क्यों कविता से ज्यादा खूबसूरत है शायरी

Aug 3, 2024

तुम्हारे वादे

 तुम्हारे वादे 

ओह कितनी हसीं होती है तुम्हारी हर एक बात 

जैसे चांदनी रात की शबनम 

जैसे तारो ने बरसा दिया हो अपना प्यार

जैसे बादलों ने बख्श दी हो हर नेमत 

मगर तुम्हारा न आना हर बात को बेमानी बना देता है 

हो जाती है सुबह से शाम और फिर दिन से रात 

बादलों कि नेमतें जब्त कर लेती है

कोशिशें तुम्हे भूलने की

कोशिशें तुम्हे भूलने की... हर रोज करती हूँ 
खुद को याद दिलाती हूँ तुम्हारी तल्ख बातें
तुम्हारा हर बात पर मुझे हराने की कोशिश
पहले खुद जैसा बनाने की कोशिश और फिर कहना कि मै कौन सा अलग हूँ
पहले अपनी कमजोरियां बताना फिर उनका जिक्र करने से नाराज होना
पहले दर्द जानना फिर मेरे दर्द का ही मजाक बना देना
फिर प्यार से संहालना और धक्का दे कर गिरा देना
याद तो ये भी है कि तुमने बिना वादा किये साथ दिया और वादा करके फिर मुकर गए
याद ये भी है कि मैंने तुम्हे भूलने की कसम खाई है और रोज रोज कसकती है टीस अपनी ही जिद से हार जाने की 
शायद तमाम कोशिशों पर मेरा एकतरफा इश्क़ हावी है
और मै अभी भी तुम्हारी यादों को अपनी कैद बनाये रखने मै जिद मे हूँ 

Jul 19, 2024

बची हुई कुछ चीजें

देखो मैंने तुम्हारी चीजें जो अब तक सम्हाल कर रखी थीं सब फेंक दिया है
ये तुम्हारा टिफिन का डब्बा, वो अलमारी मे पड़ा तुम्हारा टॉवल, 
वो चप्पल जो जान बुझ कर चुभने वाली खरीदी थी तुम्हारे लिए 
वो कुर्सी जिसपर रखे कुशन मे एक छेद है
सोफे का वो कोना जहाँ तुम्हारे बगल मे जबरदस्ती घुसने की कोशिश करती थी मै वो सब मैंने नोच नोच कर फेंक दिया है अपने दिमाग से। 
बिस्तर पर हमेशा दीवार की तरफ सोना मुझे पसंद नही इसलिए मैंने अब जगह ही बदल दी है। 
तुम्हारे डर से सफाई करने के बाद भी हर जगह दुबारा साफ करती थी मै
पौछा लगाने के बाद भी फर्श पर पाँव रखते हुए तुम्हारी नजरों मे  डाँट का खौफ होता था। 
सरकारी मकान के हर कोने को साफ करना वैसा ही है जैसे कल कंबल को सफेद करने की कोशिश
ये जानते हुए भी 
अपनी घरेलू कुशलता से तुम्हे खुश करने की असफल कोशिशें
मानो मेरा अस्तित्व रसोई और झाड़ू से सार्थक होने वाला हो
कच्ची पक्की रसोई पर तुम्हारे आग्नेय नेत्रों मे अपने लिए सहानुभूति ढूँढने की फ़ितरत 
सब छोड़ दिया है। 
मैंने अब किसी को बेवजह खुश करना, किसी के लिए खुद को गलत समझना  और प्यार पाने के लिए खुद को खोना मेरे सपनो मे नही है।
उम्र का तकाजा है अब खुद से प्यार करना सीख लूँ ये भी बहुत होगा। 

Jan 23, 2024

पूर्ण विराम

ये वाकई मे एक संपूर्ण रिश्ता था 
यह सब कुछ निर्द्वंद् था अगाध प्रेम के साथ
बिना किसी बंधन के भी हैं जुड़े थे
बिना किसी वादे के साथ का अहसास था
और मुझे यकीं था कि कुछ और तलाश करने की जरूरत नही थी

पर तुम्हारी तलाश अभी बाकी थी शायद 
मै उस तलाश को भी अपने इश्क़ का हिस्सा मान बैठी थी
हमेशा लगा 
 कि तुम वाकई हर चीज हमसे बेहतर कर सकते हो
और इस कदर आँख मूँद लिया मैंने 
कि हर चीज तुम्हारी नज़रों से ही देखूँ

मगर ये भूल गयी कि मेरे हिस्से का आसमां
 मेरी इस बेइंतहा मुहब्बत मे गुम हो गया कहीं
वो आत्म विश्वास, वो दुनिया को 
खुद अपनी आँखों से देखने की चाहत 
वो उत्तरी ध्रुवी रोशनियों तक पहुँचने की जिद 
और अपनी सोच और तालीम को किसी भी मन्दिर, मस्जिद चर्च और गुरुद्वारे मे छुप कर बैठे भगवान् से आगे रखने का सुकून... सब धीरे धीरे पीछे हो गए थे। 

शायद इश्क़ की आखिरी इंतहा यही थी
शायद हर रिश्ते की  एक मियाद होती है ये स्वीकारने का वक़्त आ गया था-- 
तुम्हारी बेचैन जिंदगी को अब पनाह की जरूरत नही थी। 
तुम्हे और भी आसमां तलाशने थे  
अपने गुस्से को जताने के बदले तुम्हे बस खुद को समेटना था जाते जाते 
रिश्तों की गर्माहट, सुकूँ, भरोसे, और सपनो के बीच घुट रही तुम्हारी और मेरी साँसों को आज़ाद होना था 
बिना किसी अफ़सोस के पूर्ण विराम के साथ। 

Dec 9, 2023

रेशम की डोर

 कभी कभी हमें लगता था, ज्यो तुम्हे  पहले भी कहीं देखा हो 

पहले भी कहीं हम  मिले हों, 

----- ज्यों सरयू के किनारे, 

चित्तोर के दुर्ग में, 

हुमायूँ के मकबरे में 


रेशम की चमकती डोर में , एक झलक मिलती थी स्नेहिल 

अब जाना वो तुम थे...

स्कूल की दीवारों से जुड़े खून के रिश्तों से परे 

भाई शब्द का अर्थ बताने वाले.. तुम थे 


प्यार के मासूम बंधन से कौन बंधा रह पाता है 

बंद  लिफाफों में भरे सूरज और पहाड़ों के 

अधूरे चित्रों में कौन रंग भर पाता है  

शिवाजी स्टेडियम से लोटस टेम्पल तक 

तुम आओ हम सब कर लेंगे का वादा करने वाले भी तुम थे ....

अमावास का टिमटिमाता तारा

 तुम चाहो तो चाँद को छु लो 

मैं  झील किनारे ही बैठना चाहती हूँ 

लहरों के बीच बनती बिगडती 

चाँद की परछाई  देखते रहना चाहती हूँ 


मैं डरती हूँ चाँद को छूने से कहीं दाग न लग जाये 

बस आईने की ख़ूबसूरती निहारना चाहती हूँ 

तुम महफ़िल की  रौनक बनना चाहते हो 

मैं अमावास का टिमटिमाता तारा 

आसमान की ऊंचाई और झील की गहराई 

कुछ ऐसा ही फर्क है तेरी मेरी चाहत में 

जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग

 हाँ ये सही है मैं उस तरह सोच नहीं पाती 

जैसा अक्सर सोचते हैं लोग.


मैं  तुम्हारी हर  एक बात  आशाओं की डोर से गूंथ लेती हूँ 

और हर डोर  सपनो की माला बन जाती है. 

मैं हर रंग को ख़ुशी की नेमत समझ लेती हूँ 

और हर ख़ुशी मेरे लिए इन्द्रधनुष बन जाती है.

मैं हर उस कागज़ को कुरान समझ लेती हूँ जिस पर प्यार लिखा होता है 

और इश्क  मेरे लिए खुदा की इबादत बन जाती है.


पर तुम जानते हो, चीजें अक्सर वैसी होती नहीं, 

जैसा मैं सोचती हूँ, जैसा मैं देखती हूँ.

तुम्हारे बार बार समझाने पर भी 

मैं सख्त जमीन को महसूसना नहीं चाहती, 

मैं क्या करूँ, अपने आप को बदल नहीं पाती.

उस तरह, वैसा बना नहीं पाती, 

जैसी चीजें होती हैं ...

जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग ...

चांदनी का अमावस

 पता नहीं क्यों डर लगता है 

चाँद को देखकर

और हसीं चांदनी 

शूल बनकर दिल के आर पार होती जाती है 


तुम्हारी खामोश ख़ूबसूरती 

रातों को खौफनाक नज़र आती है 

मेरी आखों की  कशिश 

अनजानी तड़प में बदल जाती है 


पता नहीं क्यों 

डरती हूँ अमावस की कलि ररत न आ जाये 

और ये समंदर किसी नदी में न खो जाये 

शायद मैं खुद चांदनी का अमावस हूँ 

उदास है शाम

 आ जाओ कि बहुत उदास है शाम 

तुम्हारा आना बिखेर देता है कई रंग.

आ जाओ कि बड़ा  खामोश है समा 

तुम जो आते हो कि गूंजने लगती है गुंजन.


आ जाओ बड़े स्याह लग रहे लम्हे जिन्दगी के 

कि तुम्हारे आने पे उजास से भर जाता है मन.

आ जाओ कि ताप रही जेठ की दुपहरी की  हवा 

कि प्यार की खुशबुओं  से भर जाये चिलमन.

११.०४.२००३ 

Jul 2, 2023

अनिवार्य दुख

दुख अनिवार्य है जिंदगी में 
ये भ्रम या अहसास मुझे हमेशा से था
इसलिए हमने इश्क का गम पाल लिया
आह तुम जो आए जिंदगी में क्या गजब हुआ
फोरेवर वाला फलसफा भी मिल गया 
और दुख का पर्याय भी 

एक वही अक्स आता रहा

वो इश्क ही था हर दफा रुलाता रहा
सफर तो यूं आसान ही था मेरा
कांच सा टूट कर जो चुभता रहा
ज़ख्म बना दिल ही था मेरा
उनको जाना ही था दिल तोड़ कर ही 
बार बार फिर भी वही फलसफा दोहराता रहा
इश्क और जिंदगी को अलग अलग क्यों नही जी लेते
प्यार करते हो तो गलत हो ये बताता रहा 
हम ऐसे ही क्यों न रह सकते 
साथ निभाने की ख्वाहिश फिज़ूल कहता रहा 
हर एक आंसू को दफन करते गए हम 
जेहन में फिर भी एक वही अक्स आता रहा

सार्वजनिक प्रेम

मुझे ये जिद छोड़ देनी चाहिए कि तुम मेरे हो मेरे रहोगे
बहुत लोगो ने ये गलतफहमी पाल रखी है


Jun 21, 2023

आखिरी जिद

तुमसे प्यार करना भी बड़ी बेकार जिद निकली
उड़ते गए मजाक तुम लैला मजनू शहरी फरहाद का
और हम यूं ही लटके रहे अधर में 
कभी तो तुम्हे भी सच्चा प्यार होगा
वक्त बेवक्त तुम्हारे अचानक और बेहिसाब बरसते जज़्बात 
कन्फ्यूज करते रहे
खुद ही खुद हम कयास लगाए गए 
इतने अच्छे तो लोग प्यार में ही हो सकते हैं 
हालांकि तुमने कहा था इतना अच्छा तो मैं सबके लिए हूं
ये रिलेशनशिप कभी सिचुएशनशिप से आगे बढ़ी ही नही 
मगर जब भी तुम्हे अहसास हुआ दूरी का
अचानक से फिर आ दबोचा अपने खूबसूरत शब्दों में 
सवालों का जवाब नही था तुम्हारे पास
 सौ सौ सवाल फिर भी हमसे ही करते गए
और हम तुम्हारे हर इनकार में कोई दबा छुपा सा जवाब ढूंढते रह गए
तुम सही थे यहां तुम्हारी कोई गलती नही थी। इतने अच्छे तो तुम सबके लिए थे
शायद इतने करीब भी सबके लिए थे 
बस हमारी सोच गलत थी कि 
उन सब में कुछ खास रहे होंगे हम
या सिर्फ हम ही रहे होंगे हम 
ये भी आखिरी था सबके लिए अच्छा बनने की तुम्हारी आदत से कन्फ्यूज होना
और ये आखिरी था खुद को तुम्हारी जिंदगी में शामिल होने का भ्रम रखना 


Jun 16, 2023

चुपके चुपके मत जाओ

चुपके चुपके मत जाओ
इस तरह कोई जाता है
साथ दिया है साथ निभाते
देर से मिले थे फिर भी पास तो आते
यूं इस तरह से गायब हो जाना
फिर अचानक से आना 
और बहुत करीब आ जाना
थाम कर हाथ नए वादे बनाना
और फिर ख्वाबों का टूट जाना 
टूटे ख्वाब ही सही हमने मिल कर तो देखा था
जीत कर दिल दुबारा अब दर्द मत दे जाओ
जाना ही है तो कह कर जाओ
बस ऐसे चुपके चुपके मत जाओ

इश्क में ये भी सीख लिया

इकतरफा इश्क में भी
 बहुत कुछ सीख लेते हैं लोग
किसी के माशूक को चाय की तलब थी 
तो चाय से इश्क कर लिया
किसी को बारिश पसंद थी तो जनाब चातक हो गए 
और ताकते रहे स्वाति नक्षत्र की उस बूंद को 
जो सीपी में मोती बना दे
इंतजार की धूप में तपती मरुभूमि बन गए 
और एक जरा नजर इनायत हुई कि
आषाढ़ के बादल से फट पड़े
और जब आवाज सुनी तो बस पागल ही हो गए 
ये जुनून भी मगर फकत बातों का है
उनको मालूम कहां कोई इतना भी तन्हा है