Dec 4, 2024

गुजर गया जो वक्त




एक दिन मन में आया 
किसी बिछड़े हुए को याद किया जाए 
फिर बैठ के फुर्सत से कहीं चाय पी जाए 
पास से परखा जाए वक्त की राख के नीचे दबे उन नर्म एहसासों को 
गुजर गया जो सुकून उसे फिर से जिया जाए 
 दिमाग़ ने कहा मत करो बेवकूफी फिर से
दिमाग़ ने कहा मत करो बेवकूफी फिर से 
गुजरे हुए को लौटना फिर से घावों को कुरेदना है
सिलसिले टूटने की वजह अभी खत्म कहां हुई है
क्यों फिर आंसुओं के सैलाब लिए जाएं

मग़र दिल तो दिल है दिल कहा सुनता है दिमाग़ की बातें
लगाया फोन बुला भेजा हमने पुराने वक्त को फिर से
पुराना वक्त आया उसी अकड़ में ऐंठे हुए 
गोया फिर से उसकी जरूरत है किसी को
शायद अब भी उसकी दर्द देने की फितरत नहीं समझ पाया है कोई
शायद अब भी नचा सकता है वो आज को कल की तरह 

बहुत हैरान हुआ मगर अतीत अपने बढ़े कदम के साथ
कहीं दिखी नहीं वो खरोचें  सामने था एक वीतराग।
 शून्य में हताश हो दौड़ा अतीत फिर से
कहीं तो होंगे निशान उसके द्वारा क्षत विक्षत किए एहसासों के
चिल्लाया जोर जोर से वो बेवफ़ाई का फरेब लिए 
वर्तमान रौंद कर उसकी फितरत अकेला आगे बढ़ गया है।

Sep 29, 2024

अच्छा लगता है !

सुनो, 
तुम जो ये सुबह सुबह ३ बजे गुड मॉर्निंग की
 औपचारिकता करते हो, 
अच्छा लगता है! 

अपने व्यस्त जीवन मे इंस्टाग्राम की खिड़की और व्हाट्स के रोशनदान से प्यार वाले इमोजी भेजते हो, 
बचकाना सही 
मगर अच्छा लगता है! 

कभी वीडियो काल की जिद करना और कभी फोन पर इजहारे मुहब्बत सुनने की प्रतीक्षा करना 
सदियों पुराना सा है 
मगर अच्छा लगता है ! 

 और कभी ये कहना कि मै सब ठीक कर सकता हूँ 
और कभी दूर होकर भी पास होने की ' फील ' देना
 नब्बे के दशक वाला  किसी " इलू इलू" के गीत सा है 
मगर अच्छा लगता है ! 

Sep 28, 2024

उसी के नाम से अब भी




फिर वही मोड़ आ के मिलता है वो
जहाँ सिर्फ दूरियों को रहना था। 
ना खैरियत पूछी न हाले दिल अपना कहा 
ना जाने क्यों फिर बेमुरव्वत ही मिलना था। 
उसी के नाम से अब भी निकलते हैं आँसू 
कि जिसके नाम से मुहब्बत का हर ख़्वाब ढलना था। 
फ़ितरत उनकी बेरुखी की हमारी आरजुओ पर भारी हैं हमेशा
हमही से मुखातिब हो उन्हें हमे ही रुस्वा करना था। 


kavita se khubsurat hai shayri



जाने क्यों कविता से ज्यादा खूबसूरत है शायरी 
कविता दर्द का बहाव है तड़प है शायरी
कविता प्रेम है  अगर अधूरा सा तो इश्क़ की इंतहा है शायरी
कविता अगर मन का गीत है भावनाओं मे पिघलती है
शायरी सपनो की उलझन मे बरसती है
कविता जरूरत सी है मगर शौक है शायरी
जाने क्यों कविता से ज्यादा खूबसूरत है शायरी

Aug 3, 2024

तुम्हारे वादे

 तुम्हारे वादे 

ओह कितनी हसीं होती है तुम्हारी हर एक बात 

जैसे चांदनी रात की शबनम 

जैसे तारो ने बरसा दिया हो अपना प्यार

जैसे बादलों ने बख्श दी हो हर नेमत 

मगर तुम्हारा न आना हर बात को बेमानी बना देता है 

हो जाती है सुबह से शाम और फिर दिन से रात 

बादलों कि नेमतें जब्त कर लेती है

कोशिशें तुम्हे भूलने की

कोशिशें तुम्हे भूलने की... हर रोज करती हूँ 
खुद को याद दिलाती हूँ तुम्हारी तल्ख बातें
तुम्हारा हर बात पर मुझे हराने की कोशिश
पहले खुद जैसा बनाने की कोशिश और फिर कहना कि मै कौन सा अलग हूँ
पहले अपनी कमजोरियां बताना फिर उनका जिक्र करने से नाराज होना
पहले दर्द जानना फिर मेरे दर्द का ही मजाक बना देना
फिर प्यार से संहालना और धक्का दे कर गिरा देना
याद तो ये भी है कि तुमने बिना वादा किये साथ दिया और वादा करके फिर मुकर गए
याद ये भी है कि मैंने तुम्हे भूलने की कसम खाई है और रोज रोज कसकती है टीस अपनी ही जिद से हार जाने की 
शायद तमाम कोशिशों पर मेरा एकतरफा इश्क़ हावी है
और मै अभी भी तुम्हारी यादों को अपनी कैद बनाये रखने मै जिद मे हूँ 

Jul 19, 2024

बची हुई कुछ चीजें

देखो मैंने तुम्हारी चीजें जो अब तक सम्हाल कर रखी थीं सब फेंक दिया है
ये तुम्हारा टिफिन का डब्बा, वो अलमारी मे पड़ा तुम्हारा टॉवल, 
वो चप्पल जो जान बुझ कर चुभने वाली खरीदी थी तुम्हारे लिए 
वो कुर्सी जिसपर रखे कुशन मे एक छेद है
सोफे का वो कोना जहाँ तुम्हारे बगल मे जबरदस्ती घुसने की कोशिश करती थी मै वो सब मैंने नोच नोच कर फेंक दिया है अपने दिमाग से। 
बिस्तर पर हमेशा दीवार की तरफ सोना मुझे पसंद नही इसलिए मैंने अब जगह ही बदल दी है। 
तुम्हारे डर से सफाई करने के बाद भी हर जगह दुबारा साफ करती थी मै
पौछा लगाने के बाद भी फर्श पर पाँव रखते हुए तुम्हारी नजरों मे  डाँट का खौफ होता था। 
सरकारी मकान के हर कोने को साफ करना वैसा ही है जैसे कल कंबल को सफेद करने की कोशिश
ये जानते हुए भी 
अपनी घरेलू कुशलता से तुम्हे खुश करने की असफल कोशिशें
मानो मेरा अस्तित्व रसोई और झाड़ू से सार्थक होने वाला हो
कच्ची पक्की रसोई पर तुम्हारे आग्नेय नेत्रों मे अपने लिए सहानुभूति ढूँढने की फ़ितरत 
सब छोड़ दिया है। 
मैंने अब किसी को बेवजह खुश करना, किसी के लिए खुद को गलत समझना  और प्यार पाने के लिए खुद को खोना मेरे सपनो मे नही है।
उम्र का तकाजा है अब खुद से प्यार करना सीख लूँ ये भी बहुत होगा। 

Jan 23, 2024

पूर्ण विराम

ये वाकई मे एक संपूर्ण रिश्ता था 
यह सब कुछ निर्द्वंद् था अगाध प्रेम के साथ
बिना किसी बंधन के भी हैं जुड़े थे
बिना किसी वादे के साथ का अहसास था
और मुझे यकीं था कि कुछ और तलाश करने की जरूरत नही थी

पर तुम्हारी तलाश अभी बाकी थी शायद 
मै उस तलाश को भी अपने इश्क़ का हिस्सा मान बैठी थी
हमेशा लगा 
 कि तुम वाकई हर चीज हमसे बेहतर कर सकते हो
और इस कदर आँख मूँद लिया मैंने 
कि हर चीज तुम्हारी नज़रों से ही देखूँ

मगर ये भूल गयी कि मेरे हिस्से का आसमां
 मेरी इस बेइंतहा मुहब्बत मे गुम हो गया कहीं
वो आत्म विश्वास, वो दुनिया को 
खुद अपनी आँखों से देखने की चाहत 
वो उत्तरी ध्रुवी रोशनियों तक पहुँचने की जिद 
और अपनी सोच और तालीम को किसी भी मन्दिर, मस्जिद चर्च और गुरुद्वारे मे छुप कर बैठे भगवान् से आगे रखने का सुकून... सब धीरे धीरे पीछे हो गए थे। 

शायद इश्क़ की आखिरी इंतहा यही थी
शायद हर रिश्ते की  एक मियाद होती है ये स्वीकारने का वक़्त आ गया था-- 
तुम्हारी बेचैन जिंदगी को अब पनाह की जरूरत नही थी। 
तुम्हे और भी आसमां तलाशने थे  
अपने गुस्से को जताने के बदले तुम्हे बस खुद को समेटना था जाते जाते 
रिश्तों की गर्माहट, सुकूँ, भरोसे, और सपनो के बीच घुट रही तुम्हारी और मेरी साँसों को आज़ाद होना था 
बिना किसी अफ़सोस के पूर्ण विराम के साथ। 

Dec 9, 2023

रेशम की डोर

 कभी कभी हमें लगता था, ज्यो तुम्हे  पहले भी कहीं देखा हो 

पहले भी कहीं हम  मिले हों, 

----- ज्यों सरयू के किनारे, 

चित्तोर के दुर्ग में, 

हुमायूँ के मकबरे में 


रेशम की चमकती डोर में , एक झलक मिलती थी स्नेहिल 

अब जाना वो तुम थे...

स्कूल की दीवारों से जुड़े खून के रिश्तों से परे 

भाई शब्द का अर्थ बताने वाले.. तुम थे 


प्यार के मासूम बंधन से कौन बंधा रह पाता है 

बंद  लिफाफों में भरे सूरज और पहाड़ों के 

अधूरे चित्रों में कौन रंग भर पाता है  

शिवाजी स्टेडियम से लोटस टेम्पल तक 

तुम आओ हम सब कर लेंगे का वादा करने वाले भी तुम थे ....

अमावास का टिमटिमाता तारा

 तुम चाहो तो चाँद को छु लो 

मैं  झील किनारे ही बैठना चाहती हूँ 

लहरों के बीच बनती बिगडती 

चाँद की परछाई  देखते रहना चाहती हूँ 


मैं डरती हूँ चाँद को छूने से कहीं दाग न लग जाये 

बस आईने की ख़ूबसूरती निहारना चाहती हूँ 

तुम महफ़िल की  रौनक बनना चाहते हो 

मैं अमावास का टिमटिमाता तारा 

आसमान की ऊंचाई और झील की गहराई 

कुछ ऐसा ही फर्क है तेरी मेरी चाहत में 

जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग

 हाँ ये सही है मैं उस तरह सोच नहीं पाती 

जैसा अक्सर सोचते हैं लोग.


मैं  तुम्हारी हर  एक बात  आशाओं की डोर से गूंथ लेती हूँ 

और हर डोर  सपनो की माला बन जाती है. 

मैं हर रंग को ख़ुशी की नेमत समझ लेती हूँ 

और हर ख़ुशी मेरे लिए इन्द्रधनुष बन जाती है.

मैं हर उस कागज़ को कुरान समझ लेती हूँ जिस पर प्यार लिखा होता है 

और इश्क  मेरे लिए खुदा की इबादत बन जाती है.


पर तुम जानते हो, चीजें अक्सर वैसी होती नहीं, 

जैसा मैं सोचती हूँ, जैसा मैं देखती हूँ.

तुम्हारे बार बार समझाने पर भी 

मैं सख्त जमीन को महसूसना नहीं चाहती, 

मैं क्या करूँ, अपने आप को बदल नहीं पाती.

उस तरह, वैसा बना नहीं पाती, 

जैसी चीजें होती हैं ...

जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग ...

चांदनी का अमावस

 पता नहीं क्यों डर लगता है 

चाँद को देखकर

और हसीं चांदनी 

शूल बनकर दिल के आर पार होती जाती है 


तुम्हारी खामोश ख़ूबसूरती 

रातों को खौफनाक नज़र आती है 

मेरी आखों की  कशिश 

अनजानी तड़प में बदल जाती है 


पता नहीं क्यों 

डरती हूँ अमावस की कलि ररत न आ जाये 

और ये समंदर किसी नदी में न खो जाये 

शायद मैं खुद चांदनी का अमावस हूँ 

उदास है शाम

 आ जाओ कि बहुत उदास है शाम 

तुम्हारा आना बिखेर देता है कई रंग.

आ जाओ कि बड़ा  खामोश है समा 

तुम जो आते हो कि गूंजने लगती है गुंजन.


आ जाओ बड़े स्याह लग रहे लम्हे जिन्दगी के 

कि तुम्हारे आने पे उजास से भर जाता है मन.

आ जाओ कि ताप रही जेठ की दुपहरी की  हवा 

कि प्यार की खुशबुओं  से भर जाये चिलमन.

११.०४.२००३ 

Jul 2, 2023

अनिवार्य दुख

दुख अनिवार्य है जिंदगी में 
ये भ्रम या अहसास मुझे हमेशा से था
इसलिए हमने इश्क का गम पाल लिया
आह तुम जो आए जिंदगी में क्या गजब हुआ
फोरेवर वाला फलसफा भी मिल गया 
और दुख का पर्याय भी 

एक वही अक्स आता रहा

वो इश्क ही था हर दफा रुलाता रहा
सफर तो यूं आसान ही था मेरा
कांच सा टूट कर जो चुभता रहा
ज़ख्म बना दिल ही था मेरा
उनको जाना ही था दिल तोड़ कर ही 
बार बार फिर भी वही फलसफा दोहराता रहा
इश्क और जिंदगी को अलग अलग क्यों नही जी लेते
प्यार करते हो तो गलत हो ये बताता रहा 
हम ऐसे ही क्यों न रह सकते 
साथ निभाने की ख्वाहिश फिज़ूल कहता रहा 
हर एक आंसू को दफन करते गए हम 
जेहन में फिर भी एक वही अक्स आता रहा

सार्वजनिक प्रेम

मुझे ये जिद छोड़ देनी चाहिए कि तुम मेरे हो मेरे रहोगे
बहुत लोगो ने ये गलतफहमी पाल रखी है


Jun 21, 2023

आखिरी जिद

तुमसे प्यार करना भी बड़ी बेकार जिद निकली
उड़ते गए मजाक तुम लैला मजनू शहरी फरहाद का
और हम यूं ही लटके रहे अधर में 
कभी तो तुम्हे भी सच्चा प्यार होगा
वक्त बेवक्त तुम्हारे अचानक और बेहिसाब बरसते जज़्बात 
कन्फ्यूज करते रहे
खुद ही खुद हम कयास लगाए गए 
इतने अच्छे तो लोग प्यार में ही हो सकते हैं 
हालांकि तुमने कहा था इतना अच्छा तो मैं सबके लिए हूं
ये रिलेशनशिप कभी सिचुएशनशिप से आगे बढ़ी ही नही 
मगर जब भी तुम्हे अहसास हुआ दूरी का
अचानक से फिर आ दबोचा अपने खूबसूरत शब्दों में 
सवालों का जवाब नही था तुम्हारे पास
 सौ सौ सवाल फिर भी हमसे ही करते गए
और हम तुम्हारे हर इनकार में कोई दबा छुपा सा जवाब ढूंढते रह गए
तुम सही थे यहां तुम्हारी कोई गलती नही थी। इतने अच्छे तो तुम सबके लिए थे
शायद इतने करीब भी सबके लिए थे 
बस हमारी सोच गलत थी कि 
उन सब में कुछ खास रहे होंगे हम
या सिर्फ हम ही रहे होंगे हम 
ये भी आखिरी था सबके लिए अच्छा बनने की तुम्हारी आदत से कन्फ्यूज होना
और ये आखिरी था खुद को तुम्हारी जिंदगी में शामिल होने का भ्रम रखना 


Jun 16, 2023

चुपके चुपके मत जाओ

चुपके चुपके मत जाओ
इस तरह कोई जाता है
साथ दिया है साथ निभाते
देर से मिले थे फिर भी पास तो आते
यूं इस तरह से गायब हो जाना
फिर अचानक से आना 
और बहुत करीब आ जाना
थाम कर हाथ नए वादे बनाना
और फिर ख्वाबों का टूट जाना 
टूटे ख्वाब ही सही हमने मिल कर तो देखा था
जीत कर दिल दुबारा अब दर्द मत दे जाओ
जाना ही है तो कह कर जाओ
बस ऐसे चुपके चुपके मत जाओ

इश्क में ये भी सीख लिया

इकतरफा इश्क में भी
 बहुत कुछ सीख लेते हैं लोग
किसी के माशूक को चाय की तलब थी 
तो चाय से इश्क कर लिया
किसी को बारिश पसंद थी तो जनाब चातक हो गए 
और ताकते रहे स्वाति नक्षत्र की उस बूंद को 
जो सीपी में मोती बना दे
इंतजार की धूप में तपती मरुभूमि बन गए 
और एक जरा नजर इनायत हुई कि
आषाढ़ के बादल से फट पड़े
और जब आवाज सुनी तो बस पागल ही हो गए 
ये जुनून भी मगर फकत बातों का है
उनको मालूम कहां कोई इतना भी तन्हा है

May 14, 2023

उसे प्यार नही था कभी

उसे प्यार नही था कभी
बस यूं ही खयाल रखता था
कि भीड़ में चलते वक्त अनायास ही
 उसके हाथ मेरे कंधों को बचाने आ जाते पीछे 
उसे वफा और इश्क की बातें फिज़ूल लगती थीं
पर घंटो चाय की दुकान के पास
 सिर्फ इसलिए बैठता था 
कि मैंने कहा स्वाद चाय में नही आसंग में होता है
वादों और सपनो की उलझन से 
वो  हमेशा भाग निकलता था
 फिर भी इस बात पे लड़ता था कि
 हमने उसे क्यों नहीं बुलाया 
कुछ ऐसी अलग अलग ज़िद भी होती हैं
वादों से चिढ़ते हैं लोग और जाने क्यों साथ निभाए जाते हैं...

Apr 27, 2023

बीच के खाली पन्ने

बीच के खाली पन्ने 
बहुत से
जो खाली रह गए हैं इस डायरी के
उन्हे तुम खुद भर लेना
उनका खालीपन हाथ की ओट से ढक देना
या कुछ ऐसा कर देना 
कि बिना लिखे ही उनके कुछ मायने हो जाएं
या उनके रीतेपन में ही कुछ ढूंढ लेना तुम

जिंदगी में भी तो बहुत बार ऐसा होता है
खाली कागज का खालीपन 
कभी कभी अचानक बोलने लगता है 
और होठों की खामोशी 
आंखों से तूफान बरसाने लगती है 

सौगात

वे आए मेरे पास
फूलों की सौगात लेकर
ये उनकी आदत है ।
मुस्कराते हैं वो 
मुस्कराहट देते हुए 
ये उनकी आदत है।
वो जो फूल सजा जाते हैं 
उनके नीचे हम कांटे छुपा देते हैं
ये हमारी आदत है ।
हम कांटो सा चुभ जाते हैं
कसक कर उनको भी रुला जाते हैं
ये हमारी आदत है।

ओस की बूंद

मैं रो रही थी
वह आया 
सामने खड़ा हो गया
मैं नजर उठाए 
एक और बूंद गिरी होगी शायद
मुस्कराने से पहले उसने देखा और
ओस की बूंद के साथ गायब हो गया
इतना प्यार मत देना कि दिल सम्हाल न पाए 
खिलती कलियों को गम का एक झोंका
उजाड़ न बना जाए 
और बारिश की हर बूंद छलक कर
 तुम्हारी तस्वीर न बन जाए

It's for you naughty

When you feel too sad
Hey look at me how boring you are
When you feel you are about to cry
Uff you nose is running ha ha
When you feel you are alone
Pretend we were playing I SPY
When you feel you have someone around you
Stupid, that's not me rather a street cow behind your ass ha ha
Now I guess you are too angry
Come on boy cheer up as
You look like a...ha ha.. can't say the next word ha ha because you look like ha ha
(wrote when i was in class 10)

Apr 25, 2023

स्याह जिन्दगी

 कुछ दिन थे बाकी जिन्दगी के 

आधे अधूरे सपनों की छांह समेटे 

कुछ धुल थी उम्मीदों की 

वक्त की मेज पर हौले हौले जमी सी 

टूटे बिखरे कांच से 

बिखरते सपनो के टुकड़ों से 


अब स्याह हो गई है जिन्दगी

स्याह हो गई है  हर कहानी 

राख हो गए हैं अधूरे सपनेऔर कांच के टुकड़े

साँसों की किरकिरी बन गए हैं 

जब तुम नहीं होते हो

 काली काली परछाइयों के बीच 

मई बिलकुल अकेली हो जाती हूँ 

भय के भयानक पंजे मुझे दबोचने लगते हैं 

सच और झूठ का फरेब आग उगलता है 

इन सबके बीच डरती कांपती मैं 

......सब कुछ एक दुह्स्वप्न की तरह.

 तुम......, 

तुम कहाँ होते हो प्रिय 

तुम्हारी याद एक सिहरन बनकर उभरती है 

और तुम्हारा न होना...विषदंश !!!

मेरे अकेलेपन में हर तीस कि वजह तुम होते हो 

क्युकि तुम वहां नहीं होते हो !


दीवार पर फैलते बिगड़ते पंजे 

यादो की सिहरन और वो भयानक आग 

मुझे दबोचने लगते हैं कि अचानक

खुल जाती है आँखे

टूट जाता है कुछ देर के लिए ही सही 

तुम्हारे पास होकर भी तुम्हे खो देने का भय 

पलट कर देखती हू तुम्हे छूकर 

हर त्रास को झूठ समझ कर फिर सो जाने की कोशिश करते हुए 

बस चलते जाना है

 बहुत मुश्किल है खुद से प्यार करना 

जब दिल यूँ बेखुदी में डूबा हो 

अश्कों से पूछती हूँ ख़ुशी कि महफ़िल कहाँ है 

मै उस कश्ती का नाखुदा हूँ 

जिसका कोई साहिल नहीं 

उम्र बस इक प्यास है लाख पीने से नहीं बुझती 

कदमो को बस चलते जाना है 

चाहे कोई मंजिल नहीं

यूँ ही पूछ लेती हूँ हर मुसाफिर से 

जरा सा साथ चल लें 

अब  कोई हमसफ़र गाफिल नहीं  

कारवां

 ये सच है कि मैं वो कारवां बन गई हूँ 

जिसका कोई मुकाम नहीं 

पर हर एक दास्ताँ कई जिंदगियों का जीना है 

बस अफ़सोस हर पन्ने को पलटते हुए 

मेरी दास्ताँ में हमदम तुम्हारा कहीं नाम नहीं 

अपने अश्क, हसरते और हकीकत भी 

मैंने जी ली तुम्हारे वास्ते 

और तुम्हारा ये कहना 

कि इन सब बातों का कोई अंजाम नहीं ......

Apr 21, 2023

दिल दिमाग़ और दर्द

दिल चाहता है गाना तो सुना ही होगा आपने? खासकर जब आप अपने प्रोफाइल पर 80s and 90s किड लिखते हैं और सोचते हैं सामने वाला इस बात से आपको खास तवज्जो देगा। प्रोफाइल से मतलब मेरा सोशल मीडिया से है क्योंकि आजकल लोग इंप्रेशन जमाने के लिए न तो शोले के वीरू की तरह पानी की टंकी पर चढ़ के चिल्लाते हैं और न इश्क में मर मिटने की तमन्ना लिए अनारकली की तरह दीवार में चिनने जाते हैं। सोशल मीडिया तो क्रांति ले आई इस इंप्रेशन वाले मामले में। इतना आसान है __ दो चार फोटोशॉप किए हुए फोटो लगा दो, अच्छी अच्छी बातें लिख दो, और नही आता तो किसी अच्छे लेखक या शायर की दो चार पंक्तियां उधार में डाल दो। बस हो गई एक नंबर की प्रोफाइल तैयार। उधार भी क्यों भाई साहब कहिए कि हमने ही लिखी है। सामने वाला या वाली भी लाइब्रेरी में बैठ कर बाल तो सफेद कर नहीं रहे की उन्हें पता भी हो कि जो अल्फाज पढ़ कर वो फिदा हुए जा रहे वो शेक्सपियर और रूमी के डायलॉग हैं। और पता भी चल जाए तो आप ये कह सकते हैं हमारा टेस्ट बहुत अच्छा है। इसको बोलते हैं हर्रे लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा हो जाए ! 
 
 लेकिन इस हर्रे और फिटकरी के चक्कर में लोग दिमाग ज्यादा लगा बैठते हैं और दिल को भूल जाते हैं। बेचारा दिल सच में दिमागी फितूर में उलझा सा है और उम्मीद करता है कंप्यूटर की ब्लू स्क्रीन पर ही इश्क उभर के आएगा कभी
 कंप्यूटर छोड़िए अब तो स्मार्ट फोन है हाथ में। एक से एक ऐप सो दिल लगाने के भी ऐप हैं और दिल्लगी के भी। लाइब्रेरी की किताबों में प्रेम पत्र खोजने का मंजर गया और नही अब पान की दुकान पर साढ़े तीन बजे दिलरुबा की एक झलक पाने को बेताब आशिक खड़े मिलेंगे। हर आदमी व्यस्त है भौतिक रूप से और वर्चुअली बिल्कुल खाली। इसलिए बोल रही की जिसे देखो मोबाइल पर लगा है। चाहे आप मेट्रो से ऑफिस जा रहे या ऑफिस की कुर्सी पर अपनी फाइल के अनुमोदित होने का इंतजार, या किसी अति महत्वपूर्ण मीटिंग में, आपको भी पता है आपके सामने वाला भी अपने मोबाइल में डूबा है। पासोर्ड प्रोटेक्टेड स्क्रीन पर अचानक से आपके व्हाट्स एप पर किसी का रोमांटिक मैसेज आ जाता है और आप चोर नजर से देखते हैं की बगल वाले ने देख तो नहीं लिया।  मगर कोई देखे या ना देखे, ऐप पर दिल्लगी चलती रहती है। डेटिंग ऐप, शादी के ऐप, दोस्ती और मोहब्बत के ऐप बदस्तूर चलते रहते हैं ऑफिस की गहमा गहमी और मीटिंग के बीच। बॉस के चेहरे पर मुस्कान आई तो समझ लीजिए आपके भाषण और प्रस्तुति में कोई नायब चीज नही थी भाई साब, ये तो उनके मोबाइल में अभी किसी प्रिय का संदेश था जो अचानक चेहरे पर मुस्कान छोड़ गया है।  आप भी खामखा खुश होने लगे थे।  आखिर वो भी बेचारा क्या करे। इन मीटिंग और दफ्तर की भाग दौड़ में इतना समय कहां है लोगो के पास की मिलने की जहमत उठाए। बस सब लगे हैं वर्चुअल इश्क में  जहां दिल तो भटक जाता है दिल्लगी में और दिमाग भी बेचारा कंट्रोल में रहता है। रह जाता है तो बस इश्क वाला पार्ट। मगर शायद इस जमाने में उसकी जरूरत भी काम ही है क्योंकि दिमाग का इस्तेमाल तो हर जगह हो ही रहा ऑफिस में , घर में , गाड़ी चलाते वक्त, टैक्स बचाने की तिकड़म में  अब ये दिल बेचारे को इश्क को खुराक देने को फुर्सत किसको है। रहने दो भाई इस जरूरत को भी कोल्ड स्टोरेज में ही डाल दिया जाए। 
और इश्क वाकई में सबकी जरूरत कहां है। एक तरह से तो दर्द ही देता है बस। आपको यकीन नही तो दिल लगा के देख लीजिए। मगर  सावधान, दर्द इतना न बढ़ जाए कि आप भी शायर हो जाएं। वैसे ये डर होना भी जरूरी है। आप किसी भी कवि, लेखक, शायर के पास जाकर पूछ लें। पता चल जायेगा साहब कहीं न कहीं दिल पे चोट खाए हुए हैं। वाकई में एक आध लोगो ने तो ये भी कह दिया की बिना दर्द के संगीत नही निकलता, बिना विरह की वेदना के कवि नही बना जा सकता। मतलब सच में अगर आपको शायरी का फितूर चढ़ा तो बेशक आप जोखिम ले सकते हैं। दिल का दर्द भी और दिमाग का सिरदर्द भी। हमको क्या हम तो पहले ही चेतावनी दे चुके । 


Mar 26, 2023

पॉपकॉर्न

कुछ अनकहे शब्द परिभाषित करते हैं अब
हमारे बीच पसरे मौन
वो जो बिना बोले समझ लेने वाला वाकया था न
उसे हम उधर ही छोड़ आए हैं
मंडी हाउस की उस चाय की दुकान पर 
तुम्हारे सारे द्वंद के धुएं के साथ साथ 
रिक्त जगह में भर लो जितने भी पन्ने भरने हैं
श्री राम थियेटर के जीवंत नाटकों में
पॉपकॉर्न और फ्रेंच फ्राई की जरूरत नहीं होती 

Sep 5, 2022

उच्छवास

उदासी तुम्हारे न होने की
रोज रोज खुद को याद दिलाती है 
हमे किसी के लिए नहीं जागना अब देर रात तक
वो देख सुबह होने को आती है
कुछ थमा सा है फिर भी द्वंद बन कर 
दिल और दिमाग दोनों जाना नही चाहते 
अब और कहीं चल बस कर 
धुंध से उभरते हो कैनवास और किताब की पंक्तियों में
सांस से निकलते हो एक उच्छवास बन कर

Jun 13, 2022

दृष्यांतर

तुम्हे प्यार करके देखा था...
तुम्हे अपनी दुनिया बना के भी देखा 
तुमसे अपनी हसरतें जोड़ कर देखा और 
तुम्हारे सपनो को खुद भी जी के देखा
तुमको पास आते देखा था
तुमको दिल पर कब्जा जमाते देखा था
तुम्हारे छलावे को भी देखा था 
और तुम्हे दूर जाते भी देखा था
इश्क़ है आम भूख की तरह ही
भूख  भी तभी तक लगती है 
जबतक खाना मिलने की उम्मीद रहती है 
एक हद तक भूखा रहने के बाद इंसान 
सिर्फ जीता है, खाना नही ढूंढता
एक हद तक प्यार करता है 
और फिर प्यार की शिद्दत नही रहती 
छीजते हुए उस इंद्रधनुष को अब देख रही हूं
दिल से मिटते हुए वे सवाल अब देख रही हूं
तुम वहीं हो हम भी वहीं
 बस खुद को खुद में सिमटते 
अब देख रही हूं।

Jun 7, 2022

दही जमा ही रहेगा


कुछ दिन पहले हमने मुंह में दही जमने की बात क्या की लगता है सारा सिस्टम ही जम गया। सरकार है की जमी हुई है। सुशासन चल रहा और हर तरफ राम राज्य है। अगर आपकी बुद्धि खुली हुई है तो सबकुछ सही चल रहा, जमे हुए दही की तरह। क्योंकि दही का जम जाना ही सही होता है ये तो आप जानते हैं। कमाल का उदाहरण है। लोकतंत्र के सफल और असफल होने की सारी परिभाषा ही बदल जायेगी। और इस नई परिभाषा के आविष्कार के बाद मुझे लगता है मुझे भी अब राजनीति में कूद जाना चाहिए। पर प्रोब्लम सिर्फ उन लोगो की है जो गोदी मीडिया नही देखते। उनको रवीश कुमार की बातें अच्छी लगती हैं और वो इस घोर सतयुग में भी बुराइयां खोजते हैं।
आप किसी एक पार्टी के प्रवक्ता की बात पर किसी देश का बॉयकॉट कैसे कर सकते हैं। लगता है अरब देशों को सोने की चिड़िया की कद्र नहीं। हमारे पास क्या नही है। अगर वो हमारा बहिष्कार करेंगे तो उनका घाटा है। बाकी हमको तो इस देश में कुछ होता गलत लगता ही नहीं। जो हो रहा वो इंटरनल है भाई सब। आंतरिक नीति, समझे कि नहीं। हम कश्मीर को लद्दाख बनाए या पाओभाजी में आइसक्रीम मिलाएं आपको क्या? देश विदेश में हमारी जय जय हो रही। यूक्रेन और रूस भी हमारी बात पर ही अभी तक चल रहें और आपको लगता है दही नही जम रहा।
 बिलकुल जमा हुआ है दही और जिसको भी स्वाद लेना है, अयोध्या आके देख ले। काशी आ कर देख ले।
समस्त विश्व में एकमात्र देश है जो इतिहास को सही करने में लगा है। वर्तमान से कुछ नही होता। आखिर हमारे पास एक गौरवशाली अतीत है। अब उसमे कुछ द्वंद थे तो हमारी सरकार पहले उन्हें सही करेगी, वर्तमान और भविष्य अपने आप सही हो जाएगा। है ना कमाल का आइडिया ! सोचिए आप भी और कुछ प्रेरणा लेनी चाहिए दूसरे देशों को भी। 


May 5, 2022

दही जो लगा है छूटता नहीं

🥛 ये एक ग्लास दही है और दही के लिए कुछ बड़े अच्छे विचार दिमाग में आ रहे। कभी पढ़ा था दही जो लगा है वो कहीं छूटता नही। मतलब एक बार जो जुड़ गया वो भूलता नहीं। किसी पुराने परिचित से मुलाकात हुई और बरबस ही याद आ गया। बाकी ग्लास तो हमने इमोजी से लिया है और होने के लिए ये दूध भी हो सकता है। पर आजकल सबकुछ मानने पर है। मानो तो देव नही तो पत्थर। अब हम तो पत्थर ही मानते हैं और पत्थर से बहुतों का भला हो सकता है। पहले जमाने में लोग कुटाई पिसाई कर लेते थे, आजकल दंगा फैलाने में काम आता है। 
दंगा फैलाने से याद आया कल बेटी को कोई गृहकार्य मिला था स्कूल में उसको होमवर्क बोलते हैं। पर हम अगर गृहकार्य न कहें तो आप कहेंगे हम हिंदी भूल गए, और अगर होमवर्क न कहे तो पल्ले नहीं पड़ेगा कई लोगों के। तो उस गृहकार्य में कुछ ऐसे शब्द थे जो सही नही लगे मसलन हिंदू, मुसलमान, पत्थर और लाठियां, छोटे बच्चे मिलकर एक नाटक कर रहे और उसकी विषय वस्तु में शब्द बहुत डरवाने लग रहे। खासकर इस माहौल में जब किसी को फोन करके ईद मुबारक कहने से भी डर लग रहा। हमने तो अपने दोस्तो को उलाहना भी नही दिया की सेवई नही खिलाई। 
खैर मेरे हिसाब से ऐसा नाटक नही खेला जाना चाहिए। आज अगर बच्चे धर्म और जाति में फंस गए तो कल वही उग्र सोच वाले बनेंगे और पता नही भविष्य क्या होगा। दंगा किसी के लिए अच्छा नहीं होता और बच्चो के लिए तो ये हरगिज एक विषय नही हो सकता। बाकी विद्यालय वालों की मर्जी जो पढ़ाएं। हम तो यही सोच के तृप्त हैं की सरकारी नौकरी और सरकारी आवास की खुशी के साथ बच्चे को कॉन्वेंट में पढ़ा रहे। सरकारी विद्यालय में पढ़ा कर शायद उतनी खुशी नही मिलेगी। बाकी पढ़े तो हम भी सरकारी में

  हम भी बिलकुल सरकारी तंत्र से उलझे हैं। कहानी शुरू की दही से और दही सबके मुंह में जम गया है। कभी किसी ने डांटा, बोल नही सकते क्या तुम्हारे मुंह में दही जमा है? पर तब इसका मतलब होता है चुप मत रहो। अब दही की तरह अगर आप जमे हैं या कुछ बोल नहीं रहे मतलब आप एक अच्छे नागरिक हैं। आप ऑफिस की मीटिंग में कुछ नही बोलते, सिर्फ बॉस की सुनते हैं, आप किसी से झगड़ा नहीं करते और न किसी और का झगड़ा सुलझाते हैं मतलब आप जिम्मेदार नागरिक हैं। और अगर आप किसी अन्याय के खिलाफ आवाज नही उठाते मतलब आप सच में देश भक्त हैं क्युकी आप टुकड़े टुकड़े वालो के साथ नही हैं। आज कल विरोध की आवाज लोकतंत्र का परिचायक नही अराजकता दर्शाती है और चुप रहना दूरदर्शिता। तो जनाब चुपचाप मुंह में दही जमा कर बैठे रहिए और अपना देशप्रेम दिखाए।
पर दही जो कहीं लगा है और वो छूटता नही और हमारे मुंह में जब एक बार इसका स्वाद आ जाए तो लाख डॉक्टर आपको माना करे आप थोड़ा बहुत खा ही लेंगे। स्वाद के बहाने, मिर्च के बहाने और शायद बदहजमी के बहाने भी। इधर कोरोना है उधर भीषण गर्मी। बारिश हो नही रही, न गर्मी से राहत, न नारों से न दंगों से न मंहगाई से। देखा आपने दही जो लगा था असर दिखाने लगा है फिर से। इसलिए बेहतर है हम फिर से उस दही को दबा कर मुंह में जमाए और चुप चाप देश से मोहब्बत करें।

May 2, 2022

वजह तुम हो

हर रोज की तरह खुद से किए गए वादे
तोड़ते हैं की तुम्हे कभी याद नहीं करेंगे
हर साल एक रेजोल्यूशन बनाते हैं कि तुम्हे कभी उतनी जगह नहीं देंगे की तुम आंसुओं का समंदर बहा सको
हर रोज उम्मीद करते हैं तुम्हारे नाम के साथ 
कोई टीस न महसूस हो 
हर रोज भूल जाते हैं
अपनी बेकार कोशिशें
इन तमाम बातों में
अफसोस है अभी तक तुम ही नजर आते हो
हां हर बात की वजह तब भी तुम थे और अब भी...

Apr 25, 2022

सरकारी आंकड़े और कोविड

इस भीड़ की मौत से कोई मुद्दा नहीं बनेगा अगले इलेक्शन में
हम तुम और तमाम कॉविड ग्रस्त लोग सिर्फ आंकड़े हैं
कभी राज्य छुपाएगा कभी देश 
कभी विश्व स्वास्थ्य संगठन को गरियायेंगे जोर जोर से 
और तमाम देशवासी उनकी देशभक्ति से प्रफुल्लित होंगे
सब आंकड़े हैं गायब कर दिए जाएंगे

हमारी उम्मीदें हमारे सपने
ऑफिस, बाजार, सड़के और उन पर चलते लोग
स्कूल, कॉलेज और बेरोजगार होते शिक्षक
गठरी बने रोड पर कुदाल, छेनी और हथौड़े लिए मजदूर
बिना सवारी के घंटी टन टनाता रिक्शा
सब आंकड़े हैं, गायब कर दिए जाएंगे 

गुम सुम घर में ठूंसे सहमे से बच्चे
उनकी दबी हुई हंसी व्हाट्स एप और रोबोलॉक्स के बीच धंसती चली जायेगी। 
खेल के मैदान खाली हैं वहां कोई बाजार लग सकता है क्या
खेती में किसानों को।दिलचस्पी नहीं है
वे सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी में लगे हैं
खेतों में कोई नया कारखाना लगेगा क्या
बाकी तो आंकड़े हैं गायब कर दिए जाएंगे
हिसाब है..
वो किसान और खेत, स्कूल और बच्चे
और हमारी तुम्हारी खुली आंखों की मौत भी
सब आंकड़े हैं।

Mar 30, 2022

' ट ' वर्गीय ण वाली जिंदगी


घर में किसी को बहुत हैरानी नहीं होती जब हम कोई ऐसा शब्द प्रयोग करते हैं जो है ही नहीं। पर हां हंसते बहुत है। बल्कि हमारा दावा है कि वर्तमान हिंदी में ज्यादातर क्रांतिकारी शब्द मैने और मेरे आसपास के स्वनाम धन्य बिहारी भाई बहनों ने ही बनाए हैं। अब आप ' मुन्नी बदनाम हुई, मैं झंडू बाम हुई' गाने को ही लीजिए । मैने झंडू बाम इसलिए बोला अपनी जिंदगी को क्युकी मुझे पसंद नही था कि मेरी लाइफ मेरे कॉलेज के रिजल्ट से परिभाषित हो। इससे भी ज्यादा मुझे इस बात से रंजिश थी कि जिंदगी झंड है बोलने में भाषा थोड़ी पुरुषोचित लग रही थी। अब इसको संयोग कहे कि साजिश तीन साल के अंदर मेरा कॉपी राइट लेने लायक शब्द आविष्कार देश की हर गली के जुबान पर! अब दोस्त लोग बोलते हैं हम फालतू में फुटेज ले रहे। लेकिन हम कह रहे आपको एक बिहारी सौ पर भारी! आप देख लीजिएगा थोड़े दिन बाद लोग मेरे मुंह से निकला ये ट वर्गीय ण वाला एक्सप्रेशन भी चुरा लेंगे और तब कहेंगे ई त पहले से था हो। 
तो इसलिए पहले ही अपनी चेतना को जागृत करते हुए हम आज लिख रहे की मेरी जिंदगी ट वर्गीय ण बन गई है - मतलब मुश्किल और एकदम बेकार फिर भी एकदम झक्कास टाइप की है और सबको लगता है हम कितने ऐश में जी रहे। 
आज सुबह सुबह लग रहा अगला नोबेल प्राइज मेरा इंतजार कर रहा। वैसे कोई हैरानी की बात नहीं होगी । आप जरा सोच के देखें। अकेले रविन्द्र नाथ टैगोर बांगला भाषा को ५०००० से भी ज्यादा शब्द दे गए कि नहीं! हम बिहारी लोग तो इतने ज्यादा क्रिएटिव हैं खेत की मेड़ पे सीरिया और फिलिस्तीन का फ्यूचर बता देते हैं और आप  हमारे खालिस ओरिजनल आविष्कार पे शक करते हैं! 

Feb 26, 2022

इस बार फरवरी और बेरंग है
तब इस शहर में लॉकडाउन था 
अब दिलों पे ताले लगे हैं

Feb 20, 2022

ऑनलाइन फ्रेंड्स

इस ऑनलाइन दुनिया में भी
फ्रेंडशिप की एक कहानी बनी है
चौरासी पंक्तियों के साथ
एक दम परफेक्ट 
एक शुरुआत मीठी सी
 वादों चांद सितारों और खुशबुओं के साथ
जाने कितने सामाजिक 
और राजनीतिक असंग जुड़ गए हैं 
और सोशल मीडिया के चकमक प्लेटफार्म पर 
लाइक्स एंड फॉलोइंग से परिभाषित होते हुए
 रिश्ते व्हाट्स ऐप पर कितनी संजीदा हो जाते हैं
और फिर वर्चुअल दुनिया का सच
 बाहर आते ही इतना बोसीदा, 
उबाऊ लगने लगता है
कि फिर से ढूंढने निकल पड़ते हैं लोग
रोड पर सुडकने चाय और जिंदगी का मर्म...

Feb 18, 2022

विश्वास

unfinished

सीख

जाते हुए

मज़ाक

दम

कातिलाना

सिर्फ इश्क....

फर्क

कीमत

मुक्ति

कोविड

वापसी

आजमाईश

जगह

बाज़ी

नाम

ज़िक्र वफ़ा, बेवफ़ा, बेदर्द और दर्द की दवा....
सब एक ही नाम से क्यूं शुरू होता है..

Feb 15, 2022

स्त्री बनना पड़ता है

जिंदगी में बहुत सारी चीजें पहले से पैर नहीं होते। समाज में स्त्री की एक परिभाषा तय कर दी गई है। जब भी स्त्री उस चौखट से निकलना चाहती है वह हाशिए पर खड़ी होती है। सवाल यह नहीं है कि वह उस परिभाषा से निकलना चाहती हैं बल्कि सवाल यह है स्त्रियों के लिए यह मापदंड किसने और कब बनाए। 
अगर शुरू से शुरू करें तो समाज में हर चीज पुरुष प्रधान रही है। चाहे वह शारीरिक दुर्बलता हो, चाहे संपत्ति पर अधिकार की बात या समाज में अपने स्थान को कायम रखने की बात, स्त्री अपने जीवन की परिभाषा ओं के लिए पुरुष पर निर्भर है और यह निर्भरता पुरुषों ने ही तय किया है। आज की स्त्री की स्थिति कई बातों से मिलकर तय हुई है:
1 समाज की ऐतिहासिक संरचना
2 शारीरिक दुर्बलता
3 स्त्री और सामाजिक जिम्मेदारियां
4 परिवार और स्त्री
5 वैवाहिक संरचना और स्त्री
6 बदलते परिवेश में बढ़ते हुए दोहरे दायित्व
7 बदलती पृष्ठभूमि में स्त्री