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adha adhura ishq

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Ishq mukammal kaise ho sakta hai... Jo milta hai wo adha adhura hota hai or jo nahi milta wo khwaab.. aar ishq mukammal hua to Khuda ho jayega Mai nastik hoon mujhe khuda me yakin nahi Chalo ek adha adhura ishq likhte hain ...@gunjanpriya.blogspot.com

रूहानी इश्क़

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  ये अजीब इत्तफाक था  सैंकड़ों ओर हजारों की भीड़ में  अलग अलग शहर में रहते हुए वे कभी नहीं मिले बिना देखे हुए एक दूसरे की कल्पना करते हुए  उनकी रूहें इस कदर तड़पती रहीं शब्दों का सैलाब उमड़ता रहा कैनवास पर स्लेट पर खींची गई जख्मी लकीरें ओर रोए जार जार होकर विरह यक्ष ओर यक्षणी  उनकी कहानियां सदियों तक दोहराई गई लोग पढ़ते रहे और चकित होते रहे मगर वो कभी नहीं मिले रूहानी इश्क़ का अंज़ाम अगर इतना दर्द दे  तो वाकई वो इश्क मौत से भी ज्यादा खूबसूरत है 

aaine me dekhna hai tumhe

 तुम्हारी नाराजगी अब अच्छी नहीं लग रही न तुम्हारा लापता होना अगर तुम सच में मेरी जिंदगी हो मेरी हर यात्रा का आखिरी पड़ाव  ओर वो मुकम्मल जहां  जिसके लिए ये शब्दों का भटकना शुरू हुआ  तुम्हे अब सामने आ जाना चाहिए जिंदगी बिल्कुल अपने सारी परछाइयों के साथ ये धुंधला सा अक्स अब आईने में साथ हो तो अच्छा हो वरना न हो तो अच्छा@gunjanpriya.blogspot.com  

sukhe huye gulab

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सुना है पूरी दुनिया भटक कर अब तुम अपने शहर जा रहे ये भी अच्छा है वैसे वापस लौटना  बहुत मुश्किल होता है ज्यादातर लोगों के लिए जड़ से उखड़े गमले में रोप हुए पौधे  कहां आ पाते हैं वैसे नहीं आ पाती हैं मायके  ज्यादातर ससुराल बसी लड़कियां  किचेन में चुपचाप सांस रोके,  बर्तनों को बार बार धोने के बहाने आंसू रोकती लड़कियां तुम्हारी बाड़ी में भी तो हैं कई पेड़ पौधे  ओर गमले में लगे सूखे गुलाब हां तुम समझते नहीं गमले में लगे सूखे गुलाबों का दर्द इस बार एक नया पौधा लेते जाना तुम भी गुलाब का ओर फिर पूरी जिंदगी शिकायत करते रहना  गुलाबों के कांटों, नखरों ओर सूख जाने के @gunjanpriya.blogspot.com

aa gaya basant

आ गया बसंत भूला शिशिर का आघात हर पेड़ खड़ा है लेकर नए पल्लव पात  रास्तों में बिछी है पुराने पत्तों की चांदनी  लाल है पलाश ओर शिमुल की बांधनी  सुबह की अरुणिमा से होड़ करते गुलमोहर  चाक  चाक हो उठा बीते मौसम का पतझड़  बदल गई है कोयल की कूक ओर पपीहे का संगीत  बदल गए इस बसंत मन के भी मीत  @gunjanpriya.blogspot.com

purush ko stri kab tak achi lagti hai

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पुरुष को स्त्री तबतक अच्छी लगती है  जबतक वो रूप का सागर बनी रहे हाथों में रसोई ओर गोद में बच्चे लिए रहे  सदियों से तलवार लेकर खड़ा पुरुष गलत लक्ष्मणरेखाएं खींचता आया है स्त्रियों के लिए ओर इसलिए उस दिन वही स्त्री अप्रिय हो जाती है जब हाथ में कलम ले उसके समकक्ष खड़ी हो जाती है और बताती है कि उसके जीवन की परिभाषाएं वो खुद लिख सकती है 

samajhdar aurten

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