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aa gaya basant

आ गया बसंत भूला शिशिर का आघात हर पेड़ खड़ा है लेकर नए पल्लव पात  रास्तों में बिछी है पुराने पत्तों की चांदनी  लाल है पलाश ओर शिमुल की बांधनी  सुबह की अरुणिमा से होड़ करते गुलमोहर  चाक  चाक हो उठा बीते मौसम का पतझड़  बदल गई है कोयल की कूक ओर पपीहे का संगीत  बदल गए इस बसंत मन के भी मीत  @gunjanpriya.blogspot.com

purush ko stri kab tak achi lagti hai

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पुरुष को स्त्री तबतक अच्छी लगती है  जबतक वो रूप का सागर बनी रहे हाथों में रसोई ओर गोद में बच्चे लिए रहे  सदियों से तलवार लेकर खड़ा पुरुष गलत लक्ष्मणरेखाएं खींचता आया है स्त्रियों के लिए ओर इसलिए उस दिन वही स्त्री अप्रिय हो जाती है जब हाथ में कलम ले उसके समकक्ष खड़ी हो जाती है और बताती है कि उसके जीवन की परिभाषाएं वो खुद लिख सकती है 

samajhdar aurten

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इस बार भी  कोई अलग नहीं था उसका पूछना  मै आ जाऊ  और फिर हां कहने पर  अपनी व्यस्तता दिखाना  ओर कहना फुर्सत तो नहीं पर आके निकल जाऊंगा...  जैसे उसके आने तक पृथ्वी घूमना बंद कर देगी हवाएं अपना रुख मोड लेंगी और  मेरी जिंदगी  जिसे मैने गलती से फिर से सम्हालने की  कोशिश कर ली हो  फिर से एक आहट पर सुनामी बन जाएगी

jane do

खुद से खुद को रोकना,  आंखों से बह जाने देना सारी शिकायतें सपने ओर उम्मीदें पोंछ लेना एक बार फिर से  अपने सुर्ख हुए गाल आस्तीन से रगड़कर चेहरे को।सामान्य दिखाने की कोशिश ओर मुंह घुमा कर कहना सब ठीक है बिना किसी शिकायत के  अब हमारे दरम्यान कुछ भी नहीं बचेगा बिना झिड़कियों के तुम्हारा खयाल रखना भी  कोई मायने नहीं रखता सहज और सामान्य प्रीत किसे अच्छी लगती है तुम्हे हमेशा सबकुछ तूफानी चाहिए था  बिना परिभाषा के  मुझे परिभाषाओं में बंधी सुनामी अगर मैं नदी बन गई होती  तो फिर भी तुमसे होकर गुजर जाती पर तुम्हे पहाड़ या समंदर भी कहां बनना था छद्म हम दोनों के बीच खामोशी की दीवार ला रहा था  एक झटके में देखो अब सबकुछ कितना साफ स्वच्छ खाली सा दिख रहा  उफ्फ कितनी जटिलताएं थीं इस प्रेम में  इसे अब जाने देना ही था....@gunjanpriya.blogspot.com

miyaad

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फिर अचानक दर्द कम सा होने लगा  आहिस्ता आहिस्ता शायद सारी चुभन की मियाद यही तक थी अवसाद आज भी है  बादलों की तरह कहीं दूर  उस पहाड़ के पीछे 

usko bhi vida kahna nahi aata

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इस बार भी  कोई अलग नहीं था उसका पूछना  मै आ जाऊ  और फिर हां कहने पर  अपनी व्यस्तता दिखाना  ओर कहना फुर्सत तो नहीं पर आके निकल जाऊंगा...  जैसे उसके आने तक पृथ्वी घूमना बंद कर देगी हवाएं अपना रुख मोड लेंगी और  मेरी जिंदगी  जिसे मैने गलती से फिर से सम्हालने की  कोशिश कर ली हो  फिर से एक आहट पर सुनामी बन जाएगी