नैहर

टूटी फूटी उस झोपडी में
 रहती थी एक नन्ही सी बच्ची
दूर एक कस्बे में रेलवे लाइन के किनारे
रोज निहारती थी सुबह जाने वाली रेलगाड़ियों को
ओर अपने  एक हाथ से खिड़की को पकड़े दूसरे हाथ से टा टा करती थी ट्रेन को
रोज हंसती थी उसकी मां सवेरे सवेरे
बेटी को टा टा करते देख
गुजरती ट्रेन के मुसाफिर उस बच्ची को शायद देख भी नहीं पाते थे या बस यूं ही गुजर जाते थे
पर उसका पिता रोज दुआ करता था 
आज कोई मुसाफिर उसकी बच्ची के टा टा करने पर वापस हाथ हिला दे ट्रेन की खिड़की से
धीरे धीरे दिन बीतते गए 
 छोटी सी बच्ची इतनी बड़ी हो गई
कि खिड़कियों पर चढ़ कर 
टाटा करने से बहुत ज्यादा बड़ी
दूर किसी शहर में पढ़ती है अब वो बच्ची
ओर उसके पिता अब इतने बूढ़े 
चुपचाप खिड़की पर बैठे रोज देखते हैं आने जाने वाली ट्रेनों को
ओर हाथ हिलाते हैं हर ट्रेन के मुसाफिरों को अब भी वो रोज
कि कोई मुसाफिर आते जाते उनको देख कर वापस मुस्करा दे ओर एक बार टाटा कहकर हाथ हिला दे@gunjanpriya

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