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Showing posts from January, 2012

मैं जिन्दा रहूंगी फिर भी

मैं जिन्दा रहूंगी फिर भी माना की हार ही होती रही है मेरी हर लड़ाई में मगर हारते हुए भी लड़ने में एक उम्मीद रह जाती है बाकी मेरे सपने उन जुगनुओ की तरह है जिनकी रौशनी बुझ जाती है सूरज की तपिश में फिर भी अंधेरो में वे  टिमटिमाकर देंगे साथ मेरा मैं बन गयी हु अपने बड़े सपनो और छोटी मंजिलो का मजाक मुझे मालूम है मैं जब भी ख्वाब बुनती हूँ  बिना जमीन के लोग हँसते होते है मेरे बचकानी जिदो पर मगर मेरी वजूद को यकीं दिलाती है वही हसरते और मै जिन्दा रहना चाहती हूँ उन्ही सपनो, टिमटिमाते जुगनुओं और बचकानी हसरतो के साथ जो मेरे जिन्दा रहने का सबूत हैं..  

सृजन की भोर

रात नींद नहीं आयी सृजन की भोर है शायद कुलबुलाते शब्दों के शोर ने सोने नहीं दिया नींद में हम नहीं जी पाते उन अनुभूतियों को शायद करवटों में लिपटती रही स्मृतियाँ और अधूरे स्वप्न  यहाँ हर जगह धुंध है अंधेरों की फिर भी खुल गयी मानो रौशनी की खिड़की पौ फटने से पहले ज्यो दिखा गया है राह कोई भोर का तारा........हाँ मेरे शब्द.. मुझे मालूम था मेरे शब्द लौटेंगे जरुर हाँ इस इन्तजार  में कई एहसास जी लिए  उम्र रुलती रही रिश्तो के अकेलेपन में पूर्णता को ढून्ढती       आज शब्द मिल गए है वापस उसी उबाल और तूफ़ान के साथ जिससे मेरी रूह को मिलती है पनाह.. जो छूट गए है पीछे कुछ अहसास और स्वप्न उनपे कोई इख्तियार नहीं...रंज नहीं क्योकि शब्दों की कलम को दुःख की स्याही ही चला पाती है..     

बस हम ठहर जाते हैं..

वक़्त ठहरता नहीं..मगर हम ठहर जाते हैं कभी कभी जबकि मालूम है उस वक़्त भी सब कुछ सरक रहा होता है है धीरे धीरे ये रिश्तो के तकाज़े, ये उम्मीदों की टूटन.. ये सपने जो हमें ठहरने नहीं देते कभी.. सब चुक जाते है कभी कभी जब हम ठहर जाते हैं.. उस वक़्त भी दिल रोता है इस नाउम्मीदी पे  कि जिन्दगी रुकी सी क्यों है उस वक़्त भी ख्वाहिशे कहती हैं आगे बढ़ जा उस वक़्त भी हम भागते हैं ख्यालों  के सहारे जब हम ठहर जाते हैं.. वक़्त दरिया है रुकने कहाँ देता है ख़ुशी और गम क़ी उछालें हैं इन लहरों में कोई फर्क नहीं पड़ता हम डूबे हों या पहुंचे अपने किनारों पे आखिरी वक़्त भी भवर होते हैं बस हम ठहर जाते हैं..