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Showing posts from January, 2014

मरने का भी गम किसलिए

न कोई हो तुम्हारी सुनने वाला न सुन पो तुम किसी की अगर तन्हाई हो तो ऐसी हो वरना उदासी किसलिए.. गर हाथ में मचलती हो कलम, आँखें रो नहीं पातीं दिल की खामोशी का समंदर तूफ़ान मचादे कागज़ पर ऐसी लहरें जो हो जुबां पर तो बेकसी किसलिए.. नज़र मिलते ही छुप जाएँ जो लोग, बातों ही बातों में टकरा के बेबात मुकर जाएँ जो लोग, गर जज़्बात भी छुप जाएँ नकाबों में.. तो बेपर्द रोने का गम किसलिए.. न मुहब्बत, न वफ़ा की ख्वाहिश.. न इन्तजार , न पहुँचने की बेताबी. अगर जीना हो इतना बेतकल्लुफ.. तो मरने का भी गम किसलिए...

एक स्वप्न इण्डिया गेट

एक स्वप्न इण्डिया गेट मद से भरी आँखों का।  बुढ़िया के बाल खाते बच्चे मेंहदी लगवाते युवतियां एक-दुसरे से सट -सट  कर चलते हवा के साथ टूट कर बिखरती हंसी के साथ ……… प्रेमी जोड़े। एक अहसास: इंडिया गेट.- धुप में अलसायी घास, वैजयंती के इठलाते पीले फूल और मचलती भावनाओं के साथ - सुगबुगाते बच्चे और कबूतर … एक जूनून: इंडिया गेट-- परेड करते सैनिकों के क़दमों की आहट  में, अँधेरी झाड़ियों में प्रेमिका कि नजदीकियों में का भ्रम लिए प्रेमी इधर उधर हवा में हाथ भांजते पैसे मांगते हिजड़ों का झुण्ड, फोटोग्राफी करा लो चिल्लाते लड़के टूरिस्टों पर झपकते हैं, दूर कहीं चिल्लाता है आटोरिक्शा वाला..... बीस रूपये में इण्डिया गेट-इण्डिया गेट। ……