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Showing posts from November, 2015

आदत

वो आये मेरे पास फूलों की सौगात लेते हुए.. ये तो उनकी आदत है.. मुस्कराते हैं वो  मुस्कराहट देते हुए.. ये तो उनकी आदत है.. वो जो फूल सजा जाते हैं उनके नीचे हम कांटे छुपा देते हैं.. क्या करे आदत है.. हम कांटो सा चुभ जाते हैं.. कसक कर उनको भी रुला जाते हैं.. ये हमारी आदत है..

आसंग

तुम्हारे कमरे में हर चीज अपनी लगती है... गन्दी चादर... टेबल पर राखी बेतरतीब किताबे .. कुर्सी पर पड़े तुम्हारे उलटे मौजे ... किचन में जूठी चाय की प्यालियाँ और थालियाँ.. और अभी अभी उतारी तुम्हारी शर्ट, जिसमे तुम्हारे पसीने की गंध भी है..                                                                   हाँ, मुझे अहसास है कि ये मेरा कमरा नहीं..                          कि वक्त ढलने से पहले मुझे चले जाना है...                           की घडी की सुइयां हमेशा डिगाती रहती हैं,                            यहाँ के अपनेपन को अपनी रफ़्तार से .                         ...