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Showing posts from June, 2022

दृष्यांतर

तुम्हे प्यार करके देखा था... तुम्हे अपनी दुनिया बना के भी देखा  तुमसे अपनी हसरतें जोड़ कर देखा और  तुम्हारे सपनो को खुद भी जी के देखा तुमको पास आते देखा था तुमको दिल पर कब्जा जमाते देखा था तुम्हारे छलावे को भी देखा था  और तुम्हे दूर जाते भी देखा था इश्क़ है आम भूख की तरह ही भूख  भी तभी तक लगती है  जबतक खाना मिलने की उम्मीद रहती है  एक हद तक भूखा रहने के बाद इंसान  सिर्फ जीता है, खाना नही ढूंढता एक हद तक प्यार करता है  और फिर प्यार की शिद्दत नही रहती  छीजते हुए उस इंद्रधनुष को अब देख रही हूं दिल से मिटते हुए वे सवाल अब देख रही हूं तुम वहीं हो हम भी वहीं  बस खुद को खुद में सिमटते  अब देख रही हूं।

दही जमा ही रहेगा

कुछ दिन पहले हमने मुंह में दही जमने की बात क्या की लगता है सारा सिस्टम ही जम गया। सरकार है की जमी हुई है। सुशासन चल रहा और हर तरफ राम राज्य है। अगर आपकी बुद्धि खुली हुई है तो सबकुछ सही चल रहा, जमे हुए दही की तरह। क्योंकि दही का जम जाना ही सही होता है ये तो आप जानते हैं। कमाल का उदाहरण है। लोकतंत्र के सफल और असफल होने की सारी परिभाषा ही बदल जायेगी। और इस नई परिभाषा के आविष्कार के बाद मुझे लगता है मुझे भी अब राजनीति में कूद जाना चाहिए। पर प्रोब्लम सिर्फ उन लोगो की है जो गोदी मीडिया नही देखते। उनको रवीश कुमार की बातें अच्छी लगती हैं और वो इस घोर सतयुग में भी बुराइयां खोजते हैं। आप किसी एक पार्टी के प्रवक्ता की बात पर किसी देश का बॉयकॉट कैसे कर सकते हैं। लगता है अरब देशों को सोने की चिड़िया की कद्र नहीं। हमारे पास क्या नही है। अगर वो हमारा बहिष्कार करेंगे तो उनका घाटा है। बाकी हमको तो इस देश में कुछ होता गलत लगता ही नहीं। जो हो रहा वो इंटरनल है भाई सब। आंतरिक नीति, समझे कि नहीं। हम कश्मीर को लद्दाख बनाए या पाओभाजी में आइसक्रीम मिलाएं आपको क्या? देश विदेश में हमारी जय जय हो रही। यूक्रेन और...