दृष्यांतर

तुम्हे प्यार करके देखा था...
तुम्हे अपनी दुनिया बना के भी देखा 
तुमसे अपनी हसरतें जोड़ कर देखा और 
तुम्हारे सपनो को खुद भी जी के देखा
तुमको पास आते देखा था
तुमको दिल पर कब्जा जमाते देखा था
तुम्हारे छलावे को भी देखा था 
और तुम्हे दूर जाते भी देखा था
इश्क़ है आम भूख की तरह ही
भूख  भी तभी तक लगती है 
जबतक खाना मिलने की उम्मीद रहती है 
एक हद तक भूखा रहने के बाद इंसान 
सिर्फ जीता है, खाना नही ढूंढता
एक हद तक प्यार करता है 
और फिर प्यार की शिद्दत नही रहती 
छीजते हुए उस इंद्रधनुष को अब देख रही हूं
दिल से मिटते हुए वे सवाल अब देख रही हूं
तुम वहीं हो हम भी वहीं
 बस खुद को खुद में सिमटते 
अब देख रही हूं।

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