लेकिन इस हर्रे और फिटकरी के चक्कर में लोग दिमाग ज्यादा लगा बैठते हैं और दिल को भूल जाते हैं। बेचारा दिल सच में दिमागी फितूर में उलझा सा है और उम्मीद करता है कंप्यूटर की ब्लू स्क्रीन पर ही इश्क उभर के आएगा कभी
कंप्यूटर छोड़िए अब तो स्मार्ट फोन है हाथ में। एक से एक ऐप सो दिल लगाने के भी ऐप हैं और दिल्लगी के भी। लाइब्रेरी की किताबों में प्रेम पत्र खोजने का मंजर गया और नही अब पान की दुकान पर साढ़े तीन बजे दिलरुबा की एक झलक पाने को बेताब आशिक खड़े मिलेंगे। हर आदमी व्यस्त है भौतिक रूप से और वर्चुअली बिल्कुल खाली। इसलिए बोल रही की जिसे देखो मोबाइल पर लगा है। चाहे आप मेट्रो से ऑफिस जा रहे या ऑफिस की कुर्सी पर अपनी फाइल के अनुमोदित होने का इंतजार, या किसी अति महत्वपूर्ण मीटिंग में, आपको भी पता है आपके सामने वाला भी अपने मोबाइल में डूबा है। पासोर्ड प्रोटेक्टेड स्क्रीन पर अचानक से आपके व्हाट्स एप पर किसी का रोमांटिक मैसेज आ जाता है और आप चोर नजर से देखते हैं की बगल वाले ने देख तो नहीं लिया। मगर कोई देखे या ना देखे, ऐप पर दिल्लगी चलती रहती है। डेटिंग ऐप, शादी के ऐप, दोस्ती और मोहब्बत के ऐप बदस्तूर चलते रहते हैं ऑफिस की गहमा गहमी और मीटिंग के बीच। बॉस के चेहरे पर मुस्कान आई तो समझ लीजिए आपके भाषण और प्रस्तुति में कोई नायब चीज नही थी भाई साब, ये तो उनके मोबाइल में अभी किसी प्रिय का संदेश था जो अचानक चेहरे पर मुस्कान छोड़ गया है। आप भी खामखा खुश होने लगे थे। आखिर वो भी बेचारा क्या करे। इन मीटिंग और दफ्तर की भाग दौड़ में इतना समय कहां है लोगो के पास की मिलने की जहमत उठाए। बस सब लगे हैं वर्चुअल इश्क में जहां दिल तो भटक जाता है दिल्लगी में और दिमाग भी बेचारा कंट्रोल में रहता है। रह जाता है तो बस इश्क वाला पार्ट। मगर शायद इस जमाने में उसकी जरूरत भी काम ही है क्योंकि दिमाग का इस्तेमाल तो हर जगह हो ही रहा ऑफिस में , घर में , गाड़ी चलाते वक्त, टैक्स बचाने की तिकड़म में अब ये दिल बेचारे को इश्क को खुराक देने को फुर्सत किसको है। रहने दो भाई इस जरूरत को भी कोल्ड स्टोरेज में ही डाल दिया जाए।
और इश्क वाकई में सबकी जरूरत कहां है। एक तरह से तो दर्द ही देता है बस। आपको यकीन नही तो दिल लगा के देख लीजिए। मगर सावधान, दर्द इतना न बढ़ जाए कि आप भी शायर हो जाएं। वैसे ये डर होना भी जरूरी है। आप किसी भी कवि, लेखक, शायर के पास जाकर पूछ लें। पता चल जायेगा साहब कहीं न कहीं दिल पे चोट खाए हुए हैं। वाकई में एक आध लोगो ने तो ये भी कह दिया की बिना दर्द के संगीत नही निकलता, बिना विरह की वेदना के कवि नही बना जा सकता। मतलब सच में अगर आपको शायरी का फितूर चढ़ा तो बेशक आप जोखिम ले सकते हैं। दिल का दर्द भी और दिमाग का सिरदर्द भी। हमको क्या हम तो पहले ही चेतावनी दे चुके ।
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