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Showing posts from January, 2025

तुम

बंद कर दिए थे सारे दरवाजे, खिड़कियां ओर रास्ते भी हमने फिर भी तेरा जिक्र भर आंसुओं का तूफान ले आया 

न छूटता है न छोड़ता है

मुझे उसके साथ जिंदगी जीनी थी सांस भी उसी के नाम।के साथ लेनी थी चाय की आदत भी उसने लगाई थी  हर घूंट सड़क के किनारे चाय की टपरी पर उसकी बातों में घोल कर पीनी थी उसके ब्राह्मणवाद को झेलते हुए अपनी क्रांतिकारी आवाज बचानी थी मेरे नौसिखिए पाककला पर उसके मजाक को नजरअंदाज कर उसे बताना था कि मैने अपनी पढ़ाई लिखाई में कितने कीर्तिमान स्थापित किए हैं अपनी पहचान बचाते हुए उसकी शख्शियत का भाग बनना था उसकी सफलताओं पर नाज करना था  ओर उसके दुख में दुखी, उसके मौन में शांत होना था लेकिन उसे रिश्तों में जटिलताएं नहीं चाहिए थीं उसे मुहब्बत को दोस्ती का डिमोशन देना था इश्क के जज्बात को इंसानियत बनाना था ओर तुर्रा यह कि वो दावा कर रहा था अब भी हर चीज पर  हर खयाल पर हर रस्ते पर ओर हर खयाल पर मेरे ग़ज़ब इंसान है ये न छूटता है न छोड़ने देता है  न जुड़ता है न जोड़ने देता है

पुस्तक समीक्षा प्रेमचंद ओर उनका साहित्य

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वरिष्ठ नागरिकों का दुर्व्यवहार

हमारे समाज में बढ़ती उम्र के साथ जुड़ा हुआ है - वरिष्ठ नागरिकों का दुर्व्यवहार और उनकी उम्र का बहाना बनाकर सुविधाओं का दावा करना समस्या की पहचान हम अक्सर देखते हैं कि कुछ वरिष्ठ नागरिक अपनी उम्र का बहाना बनाकर दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। वे लाइन में खड़े होने से मना कर देते हैं, सार्वजनिक स्थानों पर शोर करते हैं, और यहां तक कि दूसरों के साथ बदसलूकी भी करते हैं। यह समस्या न केवल दूसरों के लिए परेशानी का कारण बनती है, बल्कि यह हमारे समाज के लिए भी एक बड़ा मुद्दा है। कारणों की चर्चा इस समस्या के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कुछ वरिष्ठ नागरिकों को लगता है कि उनकी उम्र के कारण उन्हें विशेष अधिकार प्राप्त हैं। दूसरों को लगता है कि वे अपनी उम्र के कारण दूसरों से अधिक समझदार हैं। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि हम समझें कि उम्र के साथ विशेषाधिकार नहीं आते हैं। हमें अपनी उम्र के अनुसार व्यवहार करना चाहिए और दूसरों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। समाधान इस समस्या का समाधान यह है कि हमें अपनी उम्र के अनुसार व्यवहार करना चाहिए और दूसरों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। हमें यह समझना चाह...

सर्दियों की शिकायतें

उसकी शिकायतें सिर्फ सर्दियों में होती थीं कहां हो किधर हो सर्दियों में झगड़ा क्यों करती हो सर्दियों में कोई रूठता है भला फिर गर्मियां उसे बर्दाश्त नहीं थी न धूप का खिलना न सुबह का जागना उसे रात भर भटकना था देर शाम तक चाय की टपरी पर  बैठ कर तमाम उन बातों को कहना  जो किसी को सुकून दें न दें  चाय की कड़वाहट जरूर बर्दाश्त हो जाती थी फिर सर्दियां आ जाती थी वो कड़वे करेले से  मूंगफली और गुड़ की डली बन जाता था बड़े इसरार से चाय पीने का आमंत्रण दिया जाता  ओर हर एक दिन दसियों बार चाय पर बहस छिड़ती थी सुना है अब भी चाय पीता है कहीं किसी दुकान पर  अब सर्दियों में वो आग जला कर बैठता है  कहता है लकड़ियां बहुत अच्छी गर्मी देती हैं मुझे मालूम है लकड़ियों ओर घर का जिक्र वो सिर्फ सर्दियों में करता है।