सांस भी उसी के नाम।के साथ लेनी थी
चाय की आदत भी उसने लगाई थी
हर घूंट सड़क के किनारे चाय की टपरी पर
उसकी बातों में घोल कर पीनी थी
उसके ब्राह्मणवाद को झेलते हुए अपनी क्रांतिकारी आवाज बचानी थी
मेरे नौसिखिए पाककला पर उसके मजाक को नजरअंदाज कर
उसे बताना था कि मैने अपनी पढ़ाई लिखाई में कितने कीर्तिमान स्थापित किए हैं
अपनी पहचान बचाते हुए उसकी शख्शियत का भाग बनना था
उसकी सफलताओं पर नाज करना था
ओर उसके दुख में दुखी, उसके मौन में शांत होना था
लेकिन उसे रिश्तों में जटिलताएं नहीं चाहिए थीं
उसे मुहब्बत को दोस्ती का डिमोशन देना था
इश्क के जज्बात को इंसानियत बनाना था
ओर तुर्रा यह कि वो दावा कर रहा था अब भी हर चीज पर
हर खयाल पर हर रस्ते पर ओर हर खयाल पर मेरे
ग़ज़ब इंसान है ये न छूटता है न छोड़ने देता है
न जुड़ता है न जोड़ने देता है
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