सर्दियों की शिकायतें

उसकी शिकायतें सिर्फ सर्दियों में होती थीं
कहां हो किधर हो
सर्दियों में झगड़ा क्यों करती हो
सर्दियों में कोई रूठता है भला
फिर गर्मियां उसे बर्दाश्त नहीं थी
न धूप का खिलना न सुबह का जागना
उसे रात भर भटकना था
देर शाम तक चाय की टपरी पर 
बैठ कर तमाम उन बातों को कहना 
जो किसी को सुकून दें न दें 
चाय की कड़वाहट जरूर बर्दाश्त हो जाती थी
फिर सर्दियां आ जाती थी वो कड़वे करेले से 
मूंगफली और गुड़ की डली बन जाता था
बड़े इसरार से चाय पीने का आमंत्रण दिया जाता 
ओर हर एक दिन दसियों बार चाय पर बहस छिड़ती थी
सुना है अब भी चाय पीता है कहीं किसी दुकान पर 
अब सर्दियों में वो आग जला कर बैठता है 
कहता है लकड़ियां बहुत अच्छी गर्मी देती हैं
मुझे मालूम है लकड़ियों ओर घर का जिक्र वो सिर्फ सर्दियों में करता है।

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