बहाना
हाँ जियूंगी कैसे नहीं नाउम्मीदी का बहाना तो है
चीथड़े हैं दर्द के चुभता हुआ ज़माना तो है
अन्खाहे सपनो में खोये रहेंगे हम
कहने को अपना फ़साना तो है
दर्द की जमीन पर गम के पत्थर ही बरसते हैं
इसी बारिश में भीग जाना तो है
चीखती आँधियों में चीखती है कश्ती
लांख बचाए डूब ही जाना तो है
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