खुल्ले नहीं हैं !

मैं, उनकी कार का ड्राईवर-
हमेशा उनके साथ रहता हूँ,
उनके कुत्ते की तरह,
फर्क इतना ही है कि,
कार से निकलते ही
कुत्ता उनकी गोद मे आ जाता है
( लैप डॉग जो है),
और मे वहीं,
सामने wale बरामदे मे बैठा,
ऊंघता रहता hun,
जब तक वो दुबारा
कहीं जाने के लिए नहीं निकलतीं।

उनके
मोटे
से चेहरे पर,
मोटा- सा चश्मा रहता है-
जिसके काले शीशों से,
मैं हमेशा खौफ़ज़दा रहता हूँ।

बाज़ार में न जाने कितनी
दुकानों के पास वो रूकती हैं,
चश्मे के अन्दर से ही उनकी पैनी आँखें,
चीजों को नापती- तौलती हैं,
और जब झटके से पर्स खोल,
दुकानदार को पचास का नोट पकड़ाती हैं तो
उनका रॉब खाकर बेचारा,
सिर्फ इतना कह पाता है कि
मैडम ये to पा- पा- पचपन का था ...
हौले से दपति वो ये कह बढ़ जाती हैं-...
खुल्ले नही हैं ।

सड़क पर तेज चलती कार जब
बत्ती लाल होने पे रूक जाती है,
सामने वाले शीशे में उनका चेहरा,
मैं देख भर लेता हूँ,
जो ऐ सी चलने के बावजूद
पसीने से नहाया होता है-
अचानक शीशे के सामने आ गए
दो- चार भीखमंगो को देख कर,
और मैं,
मैडम कि परेशानी देख,
उन भीख्मंगों को डपटता हूँ-
चल, भाग यहाँ से,
देखता नही, मैडम के पास खुल्ले नही हैं.......
२४.०३.06

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