तुम्हारे जन्मदिन पर

नही करना था मुझे याद, फ़िर भी
बज उठा आधी रात को घड़ी का अलार्म,
तुम्हारे जन्मदिन पर

ओउर बज उठे स्मृतियों के सारे सुर
एक साथ...

सड़क पर दौडती भागती, दो उलझाने,
हर चीज में कुछ नया ढूँढने की उमंग
हर आदमी में कुछ अच्छा देखने की जिद,
ओउर हर स्वप्न को जी लेने की चाहत,
..................
तुम्हारे साथ...



याद आ गया फिर तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड से
इमोशनल एंकर बन जाना
हर दर्द, हर कमी बाँट लेना,
फिर अपने इतने करीब लाना की
दूरियों की परिभाषाओं का मिट जाना

न चाहते हुए भी, हम याद कर बैठे,
तुम्हारा दोश्ती में नफे नुक्सान का हिसाब भी
क्या पाया तुमने और क्या खोना पड़ा की कचोट

ओउर तुम्हारा दूर जाना उसी सबब से की
तुम दे रही हो मुझे उन तमाम वादों से मुक्ति, जिनसे लिपटी मै
ढूंढ़ रही थी तिनके तिनके में अपनी खुशी..

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