शून्य

शून्य में देखते हम, शून्य को जीते है,
हर तरफ़ कोलाहल है, सन्नाटा फ़िर भी नही जाता

भीड़ ही भीड़, हर तरफ़ सजी हैं महफिलें,
सबब ये उदासी का रोइशनियो को घेरता
अंधेरे और रौशनी की लुकाछिपी में उलझते हम
रात का खौफ दूर नही जाता

हलचल हर तरफ़ बदलाव की तूफानी लहरें लिए
खीचता है,मुझको मुझी से दूर
भागते हैं हम मानो ख़ुद को बचाने
या अंधेरे से लिपट कर ख़ुद में गम हो जाने को
गुमनाम होने का असर फ़िर भी नही जाता

Comments

rainy summer said…
This comment has been removed by the author.
rainy summer said…
हमेशा की तरह ...ईमानदार ... सच दीखता है , तुम्हारी लेखनी में ......

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