Nov 25, 2010

एहसास का ग्लोबल्य्जेशन

तुम्हारे लिए मेरे पास है
सिर्फ कुछ शब्द
शब्द जो घुमरते मेरे आजू बाजु
ओउर अपने गाये गीतों मेही
धुन्धती रहती मई तुम्हारी प्रतिध्वनि

तुम्हारे नाम से शुरू होती सुबह
धुप बन के बिखर जाती है
ओउर तुम्हारे तैरते शब्द
मुझे शाम में समेत लेते है ...
ये मेरे एहसास का ग्लोबल्य्जेशन है .

कभी लगता है झ्हरियो से आती मोर की आवाज़ में हो तुम
कभी कॉलेज , कैंटीन ओउर क्लास के कोलाहल में,
जहा हर कोई अपने "इज्म" में खोया है.
तुम्हारे इम्पेर्फेक्सन का आकर्षण
सोखा रहा मेरे अनकहे शब्दों को
ओउर मई सोच रही हु .....
की ब्लोत्तिंग पेपर पर भी उभर कर आएगा ..कोई शब्द ...

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