डर


रात के अँधेरे में
हैवानियत के घेरे में
परछाइयों से डरती हूँ
इन मुखौटो के शहर में
मुखौटेधारियो के सामने 
मुखौटा हटाने से डरती हूँ
चाहे अनचाहे सपनो के बीच
एक हकीकत का सपना आता है.....
जिसे देखने से डरती हूँ
[wrote in 1994, Manjhaul Begusarai] .
 

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