क्या आप खुश हैं?

ये सवाल मुझे पिछले २० सालो से कोंचता रहता है.. नहीं जानती वाकई में ख़ुशी  है क्या...
अगर आपको पता हो तो जरुर बताइयेगा... मै कोई फिलोसोफी सुनने के मूड में नहीं, न आध्यात्मिक  हो गयी हु अचानक से. 
पहले मुझे लगता था आपनी शर्तो पे अपनी जिदगी जी लेने में ख़ुशी होगी, बुत उसके लिए कभी कोशिश नहीं की...पढाई, परिवार, घर, और घर के लोग ये ज्यादा महत्वपूर्ण थे बनिस्पत की ख़ुशी की उस परिभाषा को जानने की जो मेरे लिए सही पैमाना बनती... हम वो हर कोशिश करते है, जिससे अपनों को ख़ुशी मिले और शायद उसी में खुद को खुश करने का बहाना ढूढ़ते फिरते है...

पर शायद ये भी ख़ुशी का सही पैमाना नहीं..सबको खुश रखने की फिराक में हम खुद को भूल बैठते है, और अचानक फिर वही खालीपन काटने दोरता है, जिसे भागने के लिए हम रिश्तो का तानाबाना बनाते रहते है...

फिर ख़ुशी को पाने की जिद भी उस बच्चे की जिद की तरह हो जाती है, जो मेले में एक खिलौने को लेने की जिद में माँ से बिछुड़  जाये..हम ख़ुशी धुन्धने की तलाश में आगे बढ़ते जाते है...एक रास्ते  से दुसरे रास्ते..इस मुकाम से उस मुकाम पर और फिर  अचानक हमें लगता है, की शायद हम ख़ुशी कही पीछे भूल आये..

पर्फेक्सन, पर्फेक्सन खोजते खोजते जो हमारे सामने आता है, वह है एक कड़वा यथार्थ ...एहसास की हम खुद कितने अपूर्ण , कितने इम्परफेक्ट हैं....ओउर ये सच हर ख़ुशी को बेमानी कर देता है..


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