May 5, 2011

उनकी मुहब्बत में

उनकी महफ़िल में जो सितम भी ढाए गए,
हर सितम पे वाह वाह करना पड़ा
वो करते थे इतनी मुहब्बत हमें
कि मुहब्बत में खुद को कुर्बान करना पड़ा

जिनके साए में देखे थे सपने अनेको
उनके पहलू में ही सब ख़ाक हो गए
उनकी नजरो से जो देखने लगे हम जहां को
वो खुद जहा में कही खो गए

चाहा था कि उल्फत में कभी खुद को मिटा देंगे
पर मेरी उल्फत होगी रुसवा ये नहीं था पता
जिनके लिए खुदा को मिटा बैठे थे हम
वो गैर बन बैठेंगे ये नहीं था पता

आज हम खामोश है डूबती सिसकियो कि तरह
मगर उनको ये भी गवारा नहीं
दिल में बस कि भी बेदिल बन बैठे वो
शायद जीना हमारा गवारा नहीं

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