बहुत बरसो से परिचय था हमारा तुम्हारा
नमस्कार से हेलो हाई कर,
सिमटे रहे हम अपने अपने दायरों में
तुमसे नहीं कही हमने
कभी राज की बातें
और अनबुझी रहीं मेरे लिए
तुम्हारे बेचैन दिन और रातें
हम अपनापन के परदे में परायों की तरह झांकते रहे...
आज बह गए हैं अश्क मेरी आँखों से
भूल से तुम्हारे सामने ही,
जिन्हें समेटते हुए तुम्हारे रुमाल ने
हमारी तमाम दूरियाँ सोख ली हैं.......
नमस्कार से हेलो हाई कर,
सिमटे रहे हम अपने अपने दायरों में
तुमसे नहीं कही हमने
कभी राज की बातें
और अनबुझी रहीं मेरे लिए
तुम्हारे बेचैन दिन और रातें
हम अपनापन के परदे में परायों की तरह झांकते रहे...
आज बह गए हैं अश्क मेरी आँखों से
भूल से तुम्हारे सामने ही,
जिन्हें समेटते हुए तुम्हारे रुमाल ने
हमारी तमाम दूरियाँ सोख ली हैं.......
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