तुम्हारे लिए है ये शब्द

तुम्हारे  लिए  मेरे  पास  है
सिर्फ कुछ शब्द
शब्द जो घुमड़ते  रहते  मेरे  आजू  बाजु
ओउर  अपने  गाये  गीतों  मेही
धुन्धती  रहती  मई  तुम्हारी  प्रतिध्वनि

तुम्हारे नाम से  शुरू  होती  सुबह
धुप  बन  के  बिखर  जाती  है
ओउर  तुम्हारे  तैरते  शब्द
मुझे  शाम  में  समेट  लेते  है ...
ये  मेरे  एहसास  का ग्लोबलाइजेशन   है .

कभी  लगता  है  झ्हरियो से आती  मोर  की  आवाज़  में  हो  तुम
कभी  कॉलेज , कैंटीन  ओउर  क्लास  के  कोलाहल  में,
जहा  हर  कोई अपने "इज्म " में खोया है.
तुम्हारे इम्पेर्फेक्सन  का  आकर्षण
सोखा  रहा  मेरे  अनकहे  शब्दों  को
और मैं  सोच  रही  हूँ .....
की  ब्लोटिंग  पेपर  पर  भी  उभर  कर  आएगा ..कोई  शब्द ...

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