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तुम्हारा नाम चाहिए

मैं तुम्हारे शब्दों को छु लेना चाहती हूँ.. तुम्हारी कविता की लय बनकर.. उठती  कलम जब हर बार कागज को चूम कुछ सुर्ख लम्हों को उकेरती होगी.. तुम्हारे हरूफ से लरजना चाहती हूँ.. सिर्फ नाम काफी है ..ख्यालो के लिए.. ख्वाब में खुद को ढूंढना चाहती हूँ..
उस आखिरी वक़्त मौत मुझे बख्शेगी नहीं ... मैंने तमाम उम्र जिन्दगी से बेवफाई जो की है ..

उलझन

जानती हूँ बहुत प्यार करते हो मुझसे जानती हूँ की मेरी पलकों में बसती है तुम्हारी सुबह मगर सपनों में भी नींद चुराया न करो.. तल्ख़ सूरज की तपिश से कुम्लायेंगे रुखसार मगर रौशनी से छुपना मुझे गंवारा नहीं तुम बारिश में भीग जाने का खौफ मत दिखाओ.. मुझे बूंदों से उलझने दो.. इन हवाओं से मिलता है जीने का जूनून तूफ़ान कह के न डराओ यूँ मुझे... इश्क की अब्र में पिघल जाने दो रात को मगर चाँद को खुद ही ढल जाने दो..

कुछ कह दो..

कुछ कह दो..हवाएं सुन लेंगीं.. शब्दों के सतरंगे इन्द्रधनुष फैला दो..मेरी आँखें चुन लेंगी.. न  अजनबी कोई न यहाँ अपना.. कोई परिचय जरुरी नहीं.. ये सिर्फ थरथराती भावनाओं का शहर है.. बिखड़ जाने दो..कोई रिश्ता खुद ही ढूँढ लेंगी.. इन बहते पलों का हिसाब ही लिख दो.. बेचैन साँसे उन्हें नज़्म में बुन लेंगीं