Aug 15, 2013

आखिरी खुदा




दिन बीतते जाते हैं..उम्र की कई दह्लीजे खिसकती जाती हैं..हमारे दायरे सिकुड़ते और बढ़ते रहते हैं...उन दायरों में शायद अभी भी वो खालीपन बाकी है..कुछ और ..कुछ और और शायद कुछ और की तलाश...

शब्दों से प्यार करना भी एक खता है..कुछ शब्द आपके लिए सपने ले आते हैं, कुछ सच के जलते शोले..कुछ नमकीन पानी बन आँखों से बह जाते है..कुछ पुकार बन हवा में तैर जाते है...मुझे अभी भी कुछ और शब्दों की तलाश है...

लगता है वक़्त के साथ चलने की दुनिया कि दौड़ में हम ज़रा पीछे रह गए..सब कुछ थमा थमा सा लगता है..सारे स्वप्न, कल्पनाएँ, यहाँ तक कि दिन और रात भी...पर सिर्फ मेरे लिए..बाकि दुनिया जैसे सरपट दौड़ रही है..

अकेलापन वह भी भीड़ में होते हुए..चाहे वो हँसता-खेलता बचपन हो या नवोदय विद्यालय के दिन, मिरांडा हाउस के कॉरिडोर से गुजरते हुए या दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में घुमते वक्त, मैंने हमेशा अपने आप को अकेले कोनों में सिमटते पाया..नहीं घुल मिल पाती सबके साथ ...कभी दोस्तों के ग्रुप्स में मैं शामिल नहीं थी..बल्कि कई तो क्लास के ग्रुप में भी मुझे पाकर असहज हो जाते थे..वज़ह मैं जान नहीं पायी..

आज भी कुछ गिने चुने लोग हैं जिन्हें दोस्त कह सकती हूँ हालाँकि मुझे पता नहीं कि वे दोस्त भी मेरे बारे में ऐसा कह पाते हैं कि नहीं..
श्याद कुछ ऐसा है जो मुझे एक हाशिये पर बनाये रखता है..सोशल नेटवर्किंग के जरिये दोस्तों की फेहरिस्त तो मैंने भी लम्बी कर ली है पर उनमे से शायद ही कोई ऐसा है है जिसे मेरी जरुरत हो या उसका नाम लेकर दिल खिल सा जाये....
कभी कभी दर लगता है ये ठहराव मुझे जमा कर न रख दे....

किसी ने कहा मैं यथार्थवादी नहीं..किसी ने कहा मै किताबी कीड़ा हूँ कभी यह भी सुनने को मिला मैंने पढाई कहा की बस पढने के स्वप्न को जीती रही..लगातार सुनते सुनते कभी कभी ये सब बाते सच लगने लगती हैं...भले वे एक -दुसरे के विपरीत ही क्यों न हों.. पर मुझे शायद किताबों के शब्दों में भी उस अनोखेपन की तलाश है..जो शायद अभी तक मिला नहीं..या मैं ढूंढ नहीं पाई..

पर खुद को असफल मान लेने से ही आपकी तलाश का अंत नहीं हो जाता..थकते , गिरते पड़ते..आखिरी कदम पर भी उस नज़्म की तलाश जारी रहेगी...जो आखिरी खुदा से रूबरू कर देती हो...या शायद ये अहसास दिला दे कि तलाश ही आखिरी खुदा है..

1 comment:

Guru Prakash Tiwari said...

HI, Gunjan,
You are absolutely right, But I have realized that in the metropolitan city or you may say current situation in our society most of the people are individual with family.
Due to fact of Single loneliness sometimes dominates but its not just only Single others also.
I feel that there is two category: 1- Single with situation., 2- Single with so many around. One has to make the decision and live the life happily with the full of dreams.

When I shifted from Japan to New Delhi found myself in similar situation.
While doing my profession I found that there is huge opportunity for the same mind people but it required to get a start.
I started the Single Parent Group on meetup.com and now we are 34 members, as we are meeting monthly basis and discuss the things which we feel to. I would like to request you to please join the group and share your experiences with us. It will help us & you also.
Hope to see you in our group soon.

Best Regards,
Guru Tiwari
09810326397