Sep 3, 2013

तुम मुक्त हो प्रेम की सीमाओं से

जाओ मुक्त किया तुम्हे हमने खुद से
तमाम वे ताने बाने जो मेरे तुम्हारे बीच उलझते रहे..
बिना एक बार भी तुम्हारी छटपटाहट को देखे बगैर..
मै डूबती रही उम्मीदों के भवर में
इन्तजार अंतहीन उन अनकहे सपनो का..
उम्मीदे उन प्यार भरी नज़रों के पलट कर आने का..
आह्वान करती बांहों का स्वप्न..

आह सब कुछ कितना निर्मल, सुन्दर, पवित्र था..
कल्पना मात्र में ही..
तुम्हारी उन बातो का तिलस्म, तमाम चीजों को ढक लेता था,
जबकि हवाओं में घुटन थी,
हर रोज मैं किसी न किसी बहाने खुद को भुलाती रही,
तुम्हारी आँखों से दुनिया देखने का तुम्हारा आग्रह
मेरी बड़ी बड़ी आँखों को सच देखने से भुलाता रहा

अब और नहीं है बाकि वो तिलस्म,
राह रोकती तुम्हारी बांहों में नहीं बचा सच को छुपा लेने का विस्तार
सामने है नग्न, क्रूर तुम्हारी घोर निजत्व, अहम् के स्तम्भ,
टूटती संवेदनाओं के परखचे , और
भरभराते सपनो के महल...

जाओ मुक्त किया तुम्हे अपनी उम्मीदों के जाल से
जाओ भूलती हूँ मैं साथ बैठ कर सपने देखने के स्वप्न..
जहाँ मेरा-तेरा- न होकर कुछ हमारा बनाने कि जिद थी..
वह अब सिर्फ चुभन है, अफ़सोस सही गयी यंत्र्नाओं की.
मुक्त हो तुम उन तमाम बीच में अनायास बन गए निशानों से,
जो हर वक्त मेरी हर सांस, मेरे जज़्बात में घुलते रहेंगे..
तुम आजाद हो मेरी हर जबाबदेही से..




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