Dec 20, 2013

तुम्हारी सफलता तुम्हे मुबारक हो दोस्त

आहत थी तुम्हारे मौन से
जो तुम्हारी उपेक्षाओ से ज्यादा मुखर था..
पर खुद को अपने ही तर्कों से साबित करते हुए..
तुम बढ़ते गए आगे.
.कभी इस हाथ को थामे कभी उस दामन से दूर झटकते हुए.
तुम्हे चाहिए था सफलताओं का सिलसिला..
दमकते रिश्तो के तमगे..
तुम्हारे लिए दोस्ती भी अपनी नियति तक पहुँचने का जरिया थी..
पर आज जबकि तुम सफल हो..
कही दूर उंचाई से तुम्हारी आवाज़ आती है कुछ भ्रम लिए..
मैं समझती हूँ श्याद रिश्तो की अहमियत समझ ली हो तुमने..
शायद संग बैठ तुम जी लेन चाहो बीते अपनेपन की नरमियत..
मगर भंग करते तुम उस तिलस्म को भी
 अपने स्वार्थ और दम्भपूर्ण पेशकश के साथ..
तुम्हारे लिए आज  भी आदमी को 
मापने का नजरिया उसकी उपयोगिता है..
और उपहास में जताते हो तुम मुझसे जुड़े होने का अहसान 
और टूटती किरचो में बिखरते हैं नर्म बर्फ से अहसास..
तुहारे अट्टहास और मेरे उच्छ्वास के साथ..

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