Apr 18, 2014

एक प्रेम पत्र: रसायन की प्रयोगशाला से

मेरी प्यारी ऑक्सीजन
अब मै दीवानगी शब्द का मतलब भी समझ गया हूँ ..साइंस की किताब के पन्नो में भी तुम समाई  लगती हो..और उसकी बातों में भी..मेरा यह परवाना तुम्हे मेरे दिल की हालत बयां कर देगा. दिन के चौबीस घंटों में छः घंटे सोने के निकाल कर बाकी अठारह घंटे इसी माइनस प्लस के समीकरण में बीत जाते हैं की तुम मुझसे और मै तुमसे कितना प्यार करता हूँ..और फिर एक नए सिरे से इस में अपना पलड़ा भारी करने में लग जाता हूँ..ये क्या होता जा रहा मुझे  ..तुमने प्रेम की ऐसी मधुर बंशी बजा कर मुझे मोहित तो आकर दिया फिर अब प्रेम निकुंज में घटाओं के बदले ये ग्रीष्म का आतप क्यों...
तुम्हारा प्यार मेरी जिन्दगी का वो एलिमेंट है जिसमे कोई मिलावट नहीं..तुम्हारी एक एक गतिविधि का रिएक्शन मुझ पर इतना फ़ास्ट होता है जैसे मग्निशियम का फीता ऑक्सीजन पाकर जलने लगे..
जब तुम्हारी नरमियत महसूस होती है तो एक कार्बनिक पदार्थ की तरह  मेरे तन बदन में प्यार का सलूशन घुलने लगता है..पर तुम्हारी थोड़ी से भी बेरुखी और तल्खियत उस प्यार को कपूर की तरह उर्ध्व्पातित कर देता है.. और मोह ऐसे भंग होता है जैसे एलेक्ट्रोल्य्सिस के बाद पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन विस्थापित हो रहे हों..
पर ये विस्थापन और अक्रियाशीलता भी क्षणभंगुर है नॉन-मेटल्स की तरह ..उस चेन रिएक्शन का रिजल्ट भी मोह ही उपजाता है..और फिर मेरे होठों पर तुम्हारा ही नाम आता है  उच्चतम परावर्तक फलक बनकर बिलकुल हीरे की तरह.
इसीलिए पल-पल तुमसे प्यार करने और न करने की मेरी आदत अब चेन रिएक्शन बन कर रह गयी है जहाँ रेअक्टेंट ही प्रोडक्ट बन जाता है..एक चक्र सा चलता रहता है..
फलस्वरूप, प्यार का फुल अमाउंट अब तुम्हारे इनेर्टनेस  से न तो घटता है न बढ़ता है..और पहले की तरह मै तुम्हारा दीवाना तुमसे पयार करता आ रहा हूँ..
तुम्हारा कार्बन -डै ऑक्साइड .
१८ जून , १९९८

No comments: