Aug 18, 2018

चुराने लगी हो तुम मेरी कविता


सुना है आजकल चुराने लगी हो तुम मेरी कविता
शब्द मेरे तुम्हे इतने अपने लगने लगे हैं
तुम समझ बैठी हो उन्हें अपना ही
पर क्या अपनी लगेंगी
शब्दों के साथ वो तमाम  चीजें भी जो उन कविताओं में हैं
हंसी और आंसू,
अफ़सोस रिश्तो के खोखले होने का
इनकार उन समझौतावादी बातों से
जो लकीरों से जकड़ती हैं इंसानियत को
क्या तुम ढूंढ लोगी उन्ही शब्दों में खुद को
जो शब्द मेरे जिए हुए एहसास हैं
क्या महसूस लोगी तुम्हारे सामने खड़े रहनुमाओं के मोटे नकाब
जो दीखते नहीं बुत छुपा लेते हैं उनकी बेखौफ फितरत
जो तुममे मुझमे और न जाने कितने और मासूम दिलों में
 भर रहे अपना ही जहरीलापन

जानती हूँ तुम अभी उसी ताने बाने से घिरी होगी
जहाँ है सहानुभूति का तिलस्म, कोरी महत्वाकांक्षाओं का जाल
और सबसे दूर कर अपनी तरह बिना रीढ़ का सरीसृप बना देने का उनका जूनून
जानती हूँ वो रोज लपेटेंगे तुम्हे अपने लिजलिजे हाथों से
उन्ही झूठे वादों के आगोश में

शब्द चुराते चुराते शायद तुम बन बैठी होगी कल्पना में
महादेवी, महाश्वेता, तसलीमा और इस्मत आपा भी
जानती हूँ फेंक दिए गए होंगे तुम्हारे चारो ओर
वर्षा वशिष्ठ और रानी मार्गो के सपने
समझ रही होगी तुम खुद को अगली अन्ना कारेनिना  
और शरत चन्द्र की दर्द से लबालब नायिकाओं को
भुला कर जीने लगी होगी तुम भी स्कारलेट ओ हारा के स्वप्न

मगर मुझे मालूम हैं चुराए शब्द कभी अपने नहीं होंगे
तुम पर भी उधार लिए सपनो का भार बहुत ज्यादा होगा
तुम भी उस जड़ से उखड़े हुए पेड़ की तरह होगी फिर
जिसे उखाड़ने से पहले मिटटी से नफरत करना सिखाया गया है
और फेंक दी जाओगी  एक दिन तुम भी
अगर गमले में सौन्दर्य का पर्याय नहीं बन पायी तुम

मुझे ख़ुशी है कि तुम्हे मेरे शब्द अपने लगे
मुझे राहत मिलेगी अगर मेरे शब्द तुम्हे इतनी ताकत दें
कि तुम निकल सको उस अँधेरे तिलस्म से
और फिर जी सको खुद को, अपने संघर्ष को अपनी ताकत से
और बेनकाब कर सकों उन चेहरों को जिनके कई चेहरे हैं





1 comment:

Unknown said...

Ajit Maskara Bhaiya's statement is the stuff of the Legend - "He is an incredible teacher provided you strictly adhere to the rule of One Hand distance'.

Don't want to say anything further.

Love and respect to a wonderful sister.