अलविदा कहना आसान नहीं होता
क्योंकि अलविदा कहते वक़्त भी छूट जाता है बहुत कुछ जुड़ा सा
अलविदा हम उन तमाम यादों को कह सकते हैं जिनके गवाह सिर्फ मैं, तुम और ये सारी कायनात है
.
अलविदा गंगा ढाबा के उन सस्ते पकौड़ों और चायों को भी,
जिन्हें पीने के लिए तुम युही अक्सर घर से ३४ किलोमीटर दूर गुजर जाया करते थे
अलविदा हर जुलूस और जलसे में मेरे जाने से पहले दी गयी तुम्हारी नसीहतों को भी
जिसे हम अपने और तुम्हारे उसूलों का फर्क बताकर नजरअंदाज कर देते हैं
आओ अलविदा कहते हैं , कॉफ़ी हाउस को, सीसीडी, बरिस्ता,
और विश्वविद्यालय की नुक्कड़ वाली चाय को
आओ अलविदा कहते हैं मेट्रो के उन स्टेशनों को जहा मेरी तुम्हारी गाडी जब तब साथ हो जाती है
अलविदा ट्रैफिक की उन रोशनियों को भी जो हमने साथ साथ पार की हैं...
अलविदा मेरे 'चिरकुट' कहने पर तुम्हारी खीझ भरी शिकायतों को भी
अलविदा तुम्हारे हर सरीके से पूछे गए सवालों पर अपनी बेफिक्री को भी
तुम्हारे मी लार्ड और डिसक्लैमेर्स को भी क्युकि मेरी शिकायतों की अदालत से अब तुम बाहर हो.
आओ आज अलविदा कहते हैं मिलकर ..
उन तमाम बातों को जो कहीं न कहीं हमें साथ होकर भी अलग करतीं
अलविदा कह दो उन उम्मीदों की जिनका वजूद हमारे करियर और सपनो के बीच बेमानी सा है
अलविदा क्युकि आसपास का हर कोई शख्स हर एक शख्स को "सेटल्ड" देखना चाहता है
और अलविदा क्युकि जिसे तुम निश्चित कहते हो वहाँ से हर अगला कदम अनजाना होता है मेरे दोस्त
अलविदा तुम्हारे दस बटा दस की जिन्दगी से निकल कर थ्री बी एच के सुकून के लिए
अलविदा कहते हैं क्युकि अभी बहुत कुछ बाकी है दोस्त
बहसें जो व्हाट्स एप्प से सडको तक लम्बी होती गयी हैं
जाने कितने कॉफीयों की कडवाहट अभी बाकी है
अलविदा फिर सिर्फ मेरे तुम्हारे अनाम सरोकारों को जिनके होने या न होने से कुछ नहीं होता
क्युकि अब भी जो छूट रहा है वो बहुत कुछ है मेरे दोस्त
अलविदा तुम्हे उस बहुत कुछ से परे कुछ और करने के लिए
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