तुम एक पत्ता बन जाओ

मेरी बात मानो
तुम एक पत्ता बन जाओ

पेड़ से गिरे पत्तों के ढेर का पत्ता,
जंगल से गुजरते मुसाफिरों के पैरों तले कुचलता पत्ता,
हवा के हर झोंके के साथ कुछ दूर तक बढ़ा पत्ता,
घास के जंगलों और कांटेदार झाड़ियों के बीच फंसा पत्ता.

बारिश के पानी के साथ बहा पत्ता,
मिटटी की खुशबू से अंत में सिमटता पत्ता
पाकर साँसे एक नए पौधे की
फिर से जन्मा जो नया पत्ता
बन सकती हो चाहो तो फिर से
डालियों पर हवा में झूम रहा पत्ता.

९ जनवरी १९९८



Comments

Awesome trully inspiring
.thanks a lot sis...

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