तुम्हारे कमरे का अपनापन

तुम्हारे कमरे में,
हर चीज अपनी सी लगती है
-गंदी चादरें, टेबल पर रखी बेतरतीब किताबें,
कुर्सी पर पड़े तुम्हारे उलटे मौजे
जूठी थालियाँ
और अभी अभी उतारी तुम्हारी शर्ट
जिसमे तुम्हारे पसीने की गंध है ..

हाँ मुझे अहसास है
कि ये मेरा कमरा नहीं,
कि वक़्त ढलने से पहले मुझे चले जाना है
कि घड़ी की सुइयां हमेशा डिगाती रहती हैं
यहाँ के अपनेपन को अपनी रफ़्तार से

फिर भी कुछ पल के लिए मैं भूल जाती हूँ
मेरी नजरे डूब जाती हैं
चीजों को करीने से रखने कि होड़ में
हर धुल भरे कोने में ढूँढने लगती हूँ
मैं अपना नाम

जब फ़ैल जाती हैं तुम्हारी पनीली आँखें कुछ पल के लिए
तुम्हारे कमरे की तरह
और इस कमरे की हर चीज मुझे अपनी लगने लगती है
तो मैं भूल जाती हूँ और भी कई बातें
घड़ी की टिकटिक,  चीजों के बेगानेपन
और सुबह से शाम की उहापोह को
तुम्हारी आँखों का पानी पी जाता है ...

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