हा! साथ सुशोभित विरह प्यास

धूमिल स्नेह की  विगलित छवि ले
राही करने चला प्रवास
थकते ही मुड़ उसने देखा
हा! साथ सुशोभित विरह प्यास

मृगतृष्णा खोने गया जहाँ
हर जगह मिली वह अमिट तृषा
निज गेह चला करके प्रवास
तब भी साथी थी विरह प्यास
हा! साथ सुशोभित विरह प्यास

धूमिल स्नेह की  विगलित छवि ले
राही करने चला प्रवास
हा! साथ सुशोभित विरह प्यास

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