तूफ़ान से पहले मैं चाहती थी
रात्रि की नीरवता को,
शाम के धुंधलके को
अंधेरों के फैलते साये को
-जो छुपा लेते हैं
गिरगिट की तरह
पल पल बदलते
मानव अस्तित्व को
तूफ़ान के बीच चाहती थी मैं
अंधेरों में बढ़ते शोर को
जो ग़मों का एहसास न दे
मगर तूफ़ान के बाद
अब मेरा वही ह्रदय
प्रकाश के विस्तृत संसार में
सुबह की नयी रौशनी का
अभिनन्दन करता है
१६ जनवरी १९९८
रात्रि की नीरवता को,
शाम के धुंधलके को
अंधेरों के फैलते साये को
-जो छुपा लेते हैं
गिरगिट की तरह
पल पल बदलते
मानव अस्तित्व को
तूफ़ान के बीच चाहती थी मैं
अंधेरों में बढ़ते शोर को
जो ग़मों का एहसास न दे
मगर तूफ़ान के बाद
अब मेरा वही ह्रदय
प्रकाश के विस्तृत संसार में
सुबह की नयी रौशनी का
अभिनन्दन करता है
१६ जनवरी १९९८
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