Mar 5, 2019

डरे सपने

सागर कि लहरों से टकरा कर
हवा दे रही आवाज़
जिन्दगी क्यों गुलिस्तान में भी बर्बाद हो रही है

अँधेरा बढ़ता जा रहा और
शाम अब ढलने लगी है
सपनो की दौर भी कुछ और लम्बी हुई है
खुशियों की बातें अब बीता हुआ कल है
भय और आतंक से भरा यहाँ हर पल है

ख़ुशी का चमन देखने को जाने क्यों हम मचल रहे हैं
आज फिर चमन में कुछ फूल खिल रहे हैं


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