डरे सपने

सागर कि लहरों से टकरा कर
हवा दे रही आवाज़
जिन्दगी क्यों गुलिस्तान में भी बर्बाद हो रही है

अँधेरा बढ़ता जा रहा और
शाम अब ढलने लगी है
सपनो की दौर भी कुछ और लम्बी हुई है
खुशियों की बातें अब बीता हुआ कल है
भय और आतंक से भरा यहाँ हर पल है

ख़ुशी का चमन देखने को जाने क्यों हम मचल रहे हैं
आज फिर चमन में कुछ फूल खिल रहे हैं


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