काश तुमने इन्तजार किया होता
तो क्या बिगड़ गया होता
बस यही न
कि प्रतीक्षा की घड़ियाँ कुछ और लम्बी होतीं,
पर इस तरह तेरी जिद की खातिर
जिंदगियां कुर्बान न होतीं
काश तुमने इन्तजार किया होता
और फिर इन्तजार के लम्हे तो
रिश्तों को अटूट बनाते हैं
वक़्त का एक झोंका भी न सह पाए जो
वो रिश्ता नहीं महज़ धोखे के
काश तुमने इन्तजार किया होता
कि जब तक कि हम संवर न गए होते
काश तुमने इन्तजार किया होता
फिर ये टीस तो न बनी रहती
आंसुओं के सैलाब के साथ
तेरे नाम पर ...
अप्रैल १६, १९९४
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