उस फ़कीर की बात

उस फ़कीर की हर बात आज झूठी हुई है
मेरी तकदीर आज मुझसे रूठी हुई है

बदलते वक़्त के नज़ारे
शमाएँ बुत चुकी हैं
और मैं--
एक सूखी नदी का तट बन चुकी हूँ
मेरी तकदीर मुझसे रूठी हुई है
उस फ़कीर की हर बात आज झूठी हुई है

अकेलापन मेरा साथी बन गया है
और बात जोहती सूनी आँखें मेरी पहचान
क्योकि मेरी तकदीर आज मुझसे रूठी हुई है
उस फ़कीर की हर बात आज झूठी हुई है
६ जून १९९४ 

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