जयमंगलागढ़ के प्रति

हवाएं सरसराती हुई
धीरे से पास आती हैं
कहती हैं इतिहास
---जयमंगलागढ़ का

नीली काबर झील की गोद में बसा
अतीत की गहराइयों में फैला
मानो विशाल पंछी बन यह गढ़
डैनों में अपने
पाल वंश की धरोहरें समेटे
अतीत, वर्तमान, और भविष्य
सबको अपने अस्तित्व का अहसास कराता है
------ जयमंगलागढ़

अनेक धार्मिक आस्थाओं को अपने आँचल में समेटे
माँ जयमंगला की पावन भूमि बन
धर्म में भक्ति और अटल विश्वास जगाता है
------- जयमंगलागढ़

सात समंदर पार से आते पंछी और पर्यटक
कलरव करते काबर के कछार में
बरगद से झूलते असंख्य  बन्दर
प्यार सदियों का उमंग भरा
बेगुसराय का न्यारा प्यारा
------- जयमंगला गढ़
मई १६, १९९४ 

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