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एक मजाक किया खुद से

फिर से शब्दों को खुदा समझ कर एक मजाक किया खुद से तुमको कैद किया घेरे में जज्बातों के और समझ बैठे उस घेरे को अपनी मंजिल तुम्हारे लिए तय था सब कुछ हर परिभाषा से परे होता है प्रेम हमने मजाक किया खुद से एक नयी परिभाषा बना कर फिर से जीने लगे हम तो तुमको आइना बनाकर सपने पिरोये अपने तुमको माला बना कर तुम्हारे लिए स्पष्ट था  रिश्तों का "टाइम बाउंड' होना हमने मजाक किया खुद से साँसों की धुरी बना कर तुम जीते रहे अनवरत अपनी अनावृत असीमित आकान्छाओं को हम सिमटते रहे इश्क की उलझनों में खुल के सांस लेना खुल के जी लेना पल भर को जीवन समझ लेना और पल भर में अपने हिस्से का जी लेना एक मजाक किया खुद से पा कर किसी को खो देने और पा कर किसी को खुद को खो कर फर्क तो सिर्फ सोच का है इल्म तुमको भी है इल्म हमको भी जिद नहीं कोई बस बंधे हैं हम इश्क रास्ता है तुम्हारा और मंजिल मेरी एक मजाक किया खुद से बस तूफ़ान को नाखुदा समझ कर १५.७.२०१९

टूटे आईने का सच

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एक सपना देखा मैंने भी करीब दो दिन पहले जब मैं गरीबी से थक कर चूर थी और मेरी आँखे मिडिल क्लास महत्वाकान्छाओं से  दब कर कुछ पल के लिए मीठी नींद में थीं अक्सर रात को नहीं सो पाती मैं छोटो बड़ी इच्छाओं की कुलबुलाहट छीन  लेती है नींद और मेरी मजबूरियों का कोल्ड स्टोरेज बड़ा होता जाता है जिसमे दफ़न हो जाती है नींद भी छोटी बड़ी चाहतों के साथ साथ इसलिए अचानक से इतने अच्छे सपने का आना बड़ा खुशगंवार था इतना कि जागने पर भी मैं झूमती रही उसकी गुनगुनाहट में अपने टूटे आईने में बार बार अपना चेहरा देखा जो हमेशा मच्छरों के  दाग से बदरंग नजर आता है मैंने देखा मेरे चेहरे पर सौम्यमुद्र के गलों की लाली छा गयी है मेरी मुस्कान माधुरी दीक्षित की अदाओं से ज्यादा मोहक हो उठी थी मेरे लैब मुस्कराने लगे ग़ालिब के शेर दुहरा कर हालाँकि आइना टूटा हुआ था और अब भी वही आइना दीवार से लगा है पर मुद्दतों बाद अपने चेहरे का इस कदर खूबसूरत लगना और अपने सपनो कि गुनगुनाहट में झूमना मुझे हमेशा याद आएगा दो पल के लिए ही सही मेरी बंद पलकों का  सच टूटे आईने में ही उभर कर आएगा

इश्क की उलझनें

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१. ना खबर है कि तुम हो, न होश कि हम हैं . अब  इस बेखुदी को तुम जो भी नाम दो .. २. हम इश्क में जीते हैं , पूरा खुदा मिलता नहीं तुम बेड़ियाँ लगाये बैठे हो अधूरे खुदा ३. हम इतने मजबूर क्यों हैं तुम्हारे सामने सनम.. मेरे बस में हम खुद नहीं तुम्हारा क्या कसूर ४. दर्द तुम्हारी उलझनों को देखकर अफ़सोस अपनी जिद से है.. जो चाहते न होते तुमको तो शिकायत भी न होती खुद से ५. उफ़ ये सुबह ये शाम और कमबख्त होठों पर तुम्हारा नाम जिक्रे वफ़ा हो या जफा या रुसवाई चाहने वालों की हर आह पे वाह निकल आती है.. ६. तुम्हारे बिना फिर से ग्रे हो गयी है जिन्दगी दोस्त आज हमने उसी स्यापे में ग्रे लिबास ओढ़ लिया है... ७. जान जाने का खौफ नहीं जान जाती है हर एक पल अब तो तुम न थे तो बेचैन थे तुमको पाने का सबब अब तो ८. बंद पलकों पे तेरे नाम का एहसास इस कदर होता है रात भर नाम लेते हो मेरा तुम जब ख्वाब पिघलते हैं सहर सहर १०. स्याह और सफ़ेद करते रह गए तुम बंद आँखों से हर तमाशा देखते रहे हम ११. क़ुसूर मेरे इश्क का हो या तेरे जूनून का तबाह तुम भी होगे तबाह हम भी .. 13. मेरे रंग पे मत जाओ धु...