Oct 17, 2019

देर बहुत हुई दोस्त अब आ जाओ

देर बहुत हुई दोस्त अब आ जाओ
रूठे हैं हम भी आके मना जाओ

कौन कहता है कि गलत हो तुम
बात इतनी नहीं कि खफ़ा हो जाओ
देर बहुत हुई दोस्त अब आ जाओ

सुबह से शाम गुजर जाती है
शब्द रुक जाते हैं आह निकल जाती है
ये जो मंजर है झील सी आँखों में
गम के समंदर बन जायेंगे
तुमको भी रुलाते हैं ये तो बता जाओ
देर बहुत हुई दोस्त अब आ जाओ

सोच होने को अलग ही होगी
बात करने का पैमाना भी अलग होगा
आँखे हैं दुनिया को देखेंगे खुद के नजरिये से
फिर भी कुछ तो अपनी कहानी ही सुना जाओ
देर बहुत हुई दोस्त अब आ जाओ

घास नम है अभी पैरों के तले
ओस की बूँद भी पिघली पिघली सी
भोर भी उदास है अपने हिस्से की
तुम्हारी लम्बी तनहा रातों की तरह
बीच के दोपहर ही भुला जाओ
देर बहुत हुई दोस्त अब आ जाओ 

2 comments:

Anonymous said...

Bahut badiya..

Happy jeevan said...

वाह जी दिल को छू लेने वाले शब्द है I like it you are great kavyitri ji