दही जो लगा है छूटता नहीं

🥛 ये एक ग्लास दही है और दही के लिए कुछ बड़े अच्छे विचार दिमाग में आ रहे। कभी पढ़ा था दही जो लगा है वो कहीं छूटता नही। मतलब एक बार जो जुड़ गया वो भूलता नहीं। किसी पुराने परिचित से मुलाकात हुई और बरबस ही याद आ गया। बाकी ग्लास तो हमने इमोजी से लिया है और होने के लिए ये दूध भी हो सकता है। पर आजकल सबकुछ मानने पर है। मानो तो देव नही तो पत्थर। अब हम तो पत्थर ही मानते हैं और पत्थर से बहुतों का भला हो सकता है। पहले जमाने में लोग कुटाई पिसाई कर लेते थे, आजकल दंगा फैलाने में काम आता है। 
दंगा फैलाने से याद आया कल बेटी को कोई गृहकार्य मिला था स्कूल में उसको होमवर्क बोलते हैं। पर हम अगर गृहकार्य न कहें तो आप कहेंगे हम हिंदी भूल गए, और अगर होमवर्क न कहे तो पल्ले नहीं पड़ेगा कई लोगों के। तो उस गृहकार्य में कुछ ऐसे शब्द थे जो सही नही लगे मसलन हिंदू, मुसलमान, पत्थर और लाठियां, छोटे बच्चे मिलकर एक नाटक कर रहे और उसकी विषय वस्तु में शब्द बहुत डरवाने लग रहे। खासकर इस माहौल में जब किसी को फोन करके ईद मुबारक कहने से भी डर लग रहा। हमने तो अपने दोस्तो को उलाहना भी नही दिया की सेवई नही खिलाई। 
खैर मेरे हिसाब से ऐसा नाटक नही खेला जाना चाहिए। आज अगर बच्चे धर्म और जाति में फंस गए तो कल वही उग्र सोच वाले बनेंगे और पता नही भविष्य क्या होगा। दंगा किसी के लिए अच्छा नहीं होता और बच्चो के लिए तो ये हरगिज एक विषय नही हो सकता। बाकी विद्यालय वालों की मर्जी जो पढ़ाएं। हम तो यही सोच के तृप्त हैं की सरकारी नौकरी और सरकारी आवास की खुशी के साथ बच्चे को कॉन्वेंट में पढ़ा रहे। सरकारी विद्यालय में पढ़ा कर शायद उतनी खुशी नही मिलेगी। बाकी पढ़े तो हम भी सरकारी में

  हम भी बिलकुल सरकारी तंत्र से उलझे हैं। कहानी शुरू की दही से और दही सबके मुंह में जम गया है। कभी किसी ने डांटा, बोल नही सकते क्या तुम्हारे मुंह में दही जमा है? पर तब इसका मतलब होता है चुप मत रहो। अब दही की तरह अगर आप जमे हैं या कुछ बोल नहीं रहे मतलब आप एक अच्छे नागरिक हैं। आप ऑफिस की मीटिंग में कुछ नही बोलते, सिर्फ बॉस की सुनते हैं, आप किसी से झगड़ा नहीं करते और न किसी और का झगड़ा सुलझाते हैं मतलब आप जिम्मेदार नागरिक हैं। और अगर आप किसी अन्याय के खिलाफ आवाज नही उठाते मतलब आप सच में देश भक्त हैं क्युकी आप टुकड़े टुकड़े वालो के साथ नही हैं। आज कल विरोध की आवाज लोकतंत्र का परिचायक नही अराजकता दर्शाती है और चुप रहना दूरदर्शिता। तो जनाब चुपचाप मुंह में दही जमा कर बैठे रहिए और अपना देशप्रेम दिखाए।
पर दही जो कहीं लगा है और वो छूटता नही और हमारे मुंह में जब एक बार इसका स्वाद आ जाए तो लाख डॉक्टर आपको माना करे आप थोड़ा बहुत खा ही लेंगे। स्वाद के बहाने, मिर्च के बहाने और शायद बदहजमी के बहाने भी। इधर कोरोना है उधर भीषण गर्मी। बारिश हो नही रही, न गर्मी से राहत, न नारों से न दंगों से न मंहगाई से। देखा आपने दही जो लगा था असर दिखाने लगा है फिर से। इसलिए बेहतर है हम फिर से उस दही को दबा कर मुंह में जमाए और चुप चाप देश से मोहब्बत करें।

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