उच्छवास

उदासी तुम्हारे न होने की
रोज रोज खुद को याद दिलाती है 
हमे किसी के लिए नहीं जागना अब देर रात तक
वो देख सुबह होने को आती है
कुछ थमा सा है फिर भी द्वंद बन कर 
दिल और दिमाग दोनों जाना नही चाहते 
अब और कहीं चल बस कर 
धुंध से उभरते हो कैनवास और किताब की पंक्तियों में
सांस से निकलते हो एक उच्छवास बन कर

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