पॉपकॉर्न

कुछ अनकहे शब्द परिभाषित करते हैं अब
हमारे बीच पसरे मौन
वो जो बिना बोले समझ लेने वाला वाकया था न
उसे हम उधर ही छोड़ आए हैं
मंडी हाउस की उस चाय की दुकान पर 
तुम्हारे सारे द्वंद के धुएं के साथ साथ 
रिक्त जगह में भर लो जितने भी पन्ने भरने हैं
श्री राम थियेटर के जीवंत नाटकों में
पॉपकॉर्न और फ्रेंच फ्राई की जरूरत नहीं होती 

Comments

Rajiw said…
बहुत सुंदर

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