कारवां

 ये सच है कि मैं वो कारवां बन गई हूँ 

जिसका कोई मुकाम नहीं 

पर हर एक दास्ताँ कई जिंदगियों का जीना है 

बस अफ़सोस हर पन्ने को पलटते हुए 

मेरी दास्ताँ में हमदम तुम्हारा कहीं नाम नहीं 

अपने अश्क, हसरते और हकीकत भी 

मैंने जी ली तुम्हारे वास्ते 

और तुम्हारा ये कहना 

कि इन सब बातों का कोई अंजाम नहीं ......

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