बस चलते जाना है

 बहुत मुश्किल है खुद से प्यार करना 

जब दिल यूँ बेखुदी में डूबा हो 

अश्कों से पूछती हूँ ख़ुशी कि महफ़िल कहाँ है 

मै उस कश्ती का नाखुदा हूँ 

जिसका कोई साहिल नहीं 

उम्र बस इक प्यास है लाख पीने से नहीं बुझती 

कदमो को बस चलते जाना है 

चाहे कोई मंजिल नहीं

यूँ ही पूछ लेती हूँ हर मुसाफिर से 

जरा सा साथ चल लें 

अब  कोई हमसफ़र गाफिल नहीं  

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