टूटी फूटी उस झोपडी में रहती थी एक नन्ही सी बच्ची दूर एक कस्बे में रेलवे लाइन के किनारे रोज निहारती थी सुबह जाने वाली रेलगाड़ियों को ओर अपने एक हाथ से खिड़की को पकड़े दूसरे हाथ से टा टा करती थी ट्रेन को रोज हंसती थी उसकी मां सवेरे सवेरे बेटी को टा टा करते देख गुजरती ट्रेन के मुसाफिर उस बच्ची को शायद देख भी नहीं पाते थे या बस यूं ही गुजर जाते थे पर उसका पिता रोज दुआ करता था आज कोई मुसाफिर उसकी बच्ची के टा टा करने पर वापस हाथ हिला दे ट्रेन की खिड़की से धीरे धीरे दिन बीतते गए छोटी सी बच्ची इतनी बड़ी हो गई कि खिड़कियों पर चढ़ कर टाटा करने से बहुत ज्यादा बड़ी दूर किसी शहर में पढ़ती है अब वो बच्ची ओर उसके पिता अब इतने बूढ़े चुपचाप खिड़की पर बैठे रोज देखते हैं आने जाने वाली ट्रेनों को ओर हाथ हिलाते हैं हर ट्रेन के मुसाफिरों को अब भी वो रोज कि कोई मुसाफिर आते जाते उनको देख कर वापस मुस्करा दे ओर एक बार टाटा कहकर हाथ हिला दे@gunjanpriya
दिल चाहता है गाना तो सुना ही होगा आपने? खासकर जब आप अपने प्रोफाइल पर 80s and 90s किड लिखते हैं और सोचते हैं सामने वाला इस बात से आपको खास तवज्जो देगा। प्रोफाइल से मतलब मेरा सोशल मीडिया से है क्योंकि आजकल लोग इंप्रेशन जमाने के लिए न तो शोले के वीरू की तरह पानी की टंकी पर चढ़ के चिल्लाते हैं और न इश्क में मर मिटने की तमन्ना लिए अनारकली की तरह दीवार में चिनने जाते हैं। सोशल मीडिया तो क्रांति ले आई इस इंप्रेशन वाले मामले में। इतना आसान है __ दो चार फोटोशॉप किए हुए फोटो लगा दो, अच्छी अच्छी बातें लिख दो, और नही आता तो किसी अच्छे लेखक या शायर की दो चार पंक्तियां उधार में डाल दो। बस हो गई एक नंबर की प्रोफाइल तैयार। उधार भी क्यों भाई साहब कहिए कि हमने ही लिखी है। सामने वाला या वाली भी लाइब्रेरी में बैठ कर बाल तो सफेद कर नहीं रहे की उन्हें पता भी हो कि जो अल्फाज पढ़ कर वो फिदा हुए जा रहे वो शेक्सपियर और रूमी के डायलॉग हैं। और पता भी चल जाए तो आप ये कह सकते हैं हमारा टेस्ट बहुत अच्छा है। इसको बोलते हैं हर्रे लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा हो जाए ! लेकिन इस हर्रे और फिटकरी के चक्कर ...
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